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मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाने, पराली और केमिकल आधारित कीटनाशकों के विकल्प तैयार करने के लिए प्रदेश में साझा प्रयास हो रहे हैं। पहला लक्ष्य केमिकल आधारित खतरनाक फर्टिलाइजर, इंसेक्टिसाइड, पेस्टीसाइड की जगह सूक्ष्म जीवों के माध्यम से मिट्टी की उर्वरकता बढ़ाना है। वैज्ञानिक इसके लिए नवंबर 2021 से प्रदेश के 11 एग्रो क्लाइमेटिक जोन की जैव विविधता का आकलन कर रहे हैं। दूसरा किसानों को पराली ना जलाना पड़े, इसके लिए सूक्ष्म जीवों के जरिए डी-कंपोजर तैयार किया जा रहा है। इसके छिड़काव से पराली खाद में बदलकर मिट्टी में मिल जाएगी, जो फसल की उत्पादकता बढ़ाएगी। शोध में देखा जा रहा है कि प्रदेश में किस एग्रो क्लाइमेटिक जोन की मिट्टी में किस तरह के सूक्ष्म जीव हैं। इसके आधार पर पता चलेगा कि वहां की मिट्टी की उत्पादन क्षमता कितनी है और कौन की फसलें पर वहां ली जा सकती हैं।
इनपुट कॉस्ट यानी रासायनिक उर्वरक-कीटनाशकों और सिंचाई पर होने वाले खर्च पर लगाम लगेगी। किसान को लागत घटने पर फायदा ज्यादा होगा। संबंधित क्षेत्र की जैव विविधता बढ़ेगी। अंतर्वर्ती फसलें व फसलों का चक्रीकरण बढ़ जाएगा। भू-जल स्तर गिरने से रोका जा सकेगा। जलवायु परिवर्तन पर कुछ हद तक रोक लगेगी।शोध में देखा जा रहा है कि प्रदेश में किस एग्रो क्लाइमेटिक जोन की मिट्टी में किस तरह के सूक्ष्म जीव हैं। इसके आधार पर पता चलेगा कि वहां की मिट्टी की उत्पादन क्षमता कितनी है और कौन -सी फसलें पर वहां ली जा सकती हैं। इनपुट कॉस्ट यानी रासायनिक उर्वरक-कीटनाशकों और सिंचाई पर होने वाले खर्च पर लगाम लगेगी। किसान को लागत घटने पर फायदा ज्यादा होगा। संबंधित क्षेत्र की जैव विविधता बढ़ेगी। अंतर्वर्ती फसलें व फसलों का चक्रीकरण बढ़ जाएगा। भू-जल स्तर गिरने से रोका जा सकेगा। जलवायु परिवर्तन पर कुछ हद तक रोक लगेगी।
Kolar News
1 June 2022
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