सपनों को साकार करने के लिए परिश्रम भी करना होगा
मंजिल तक पहुंचने के लिए रास्ते भी ढूंढने होंगे - पंकज दुबेआज युवाओं को जीवन में कुछ नया करने के लिए सपने देखना चाहिए और उन सपनों को साकार करने के लिए रास्ते खुद चुनना चाहिए। सिर्फ सपने देखने से मंजिल नहीं मिलती है। अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए रास्ते भी ढूंढने होंगे और उसे पाने के लिए परिश्रम भी करना होगा। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में युवा फिल्मकार एवं चर्चित बेस्ट सेलर उपन्यास ‘लूजर कहीं का’ के लेखक पंकज दुबे ने व्यक्त किए। वे अपनी नई पुस्तक 'इश्कियापा' पर चर्चा के दौरान पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे थे।दुबे ने कहा कि वर्तमान में बेस्ट सेलर उपन्यासों पर फिल्में बन रही हैं। आज के दौर में लेखन और फिल्मों में वैसा विजन नहीं दिखाई देता, जैसा होना चाहिए। हर फिल्म और पुस्तक के दर्शक और पाठक अलग-अलग होते हैं। प्रत्येक बेस्ट सेलर उपन्यास पर अच्छी फिल्म बन जाए ऐसा जरूरी नहीं है।उपन्यास को फिल्म का रूप देने के लिए उसे फिल्म की दृष्टि से देखना जरूरी है। मीडिया के जो विद्यार्थी फिल्म निर्माण में अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उन्हें पहले अपने कॉन्सेप्ट पर पांच मिनट की एक फिल्म बनाना चाहिए। उस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के उपरांत ही उसे संपूर्ण फिल्म की शक्ल देना चाहिए। व्याख्यान के दौरान विश्वविद्यालय के डीन अकादमिक डॉ. सच्चिदानंद जोशी, विभागाध्यक्ष, जनसंपर्क, डॉ. पवित्र श्रीवास्तव एवं निदेशक प्रोडक्शन, आशीष जोशी उपस्थित रहे।