वक्री ट्रेफिक से मार्गी होतीं सड़कें
मनोज सिंह मीकरेल के बाद भारत में यात्रा करने का सस्ता साधन सड़क परिवहन है । भारत का ३.३ मिलियन किलोमीटर का सड़क नेटवर्क है, जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा है । सड़कें परिवहन में प्रमुख स्थान रखती हैं, वर्तमान अनुमान के अनुसार लगभग ६५ प्रतिशत माल और ८५ प्रतिशत सवारी यातायात करते हैं । सड़क पर यातायात की वृद्धि प्रतिवर्ष ७ से १० प्रतिशत की दर से हो रही है, जबकि पिछले कुछ वर्षो से वाहन संख्या वृद्धि १२ प्रतिशत प्रतिवर्ष है । मार्ग देश की जीवनरेखा है, जो देश के दूरस्थ कोनों तथा सुदूर सीमा क्षेत्रों को आपस में जोड़ते हैं । अब नेटवर्क में विस्तार किए जाने के अतिरिक्त मार्ग की गुणवत्ता पर जोर दिया जा रहा है, इसलिए इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अनेक परियोजनाएँ और कार्य शुरू किए हैं । बाधाएं एवं सुधार :-जिस प्रकार ग्रह नक्षत्र वक्री व मार्गी होने पर भिन्न-भिन्न प्रभाव डालते हैं, उसी प्रकार ट्रेफिक की वक्र दृष्टि सड़कों को मार्गी होने पर मजबूर कर रही हैं । आज शहरों में रह रहे अधिकतम परिवारों के पास स्वयं के वाहन हैं। संपन्न परिवार में लगभग प्रत्येक सदस्य परिवहन हेतु अपने वाहन का उपयोग करता है । भोपाल में सार्वजनिक परिवहन का सदैव अभाव रहा है, इसका मुख्य कारण भौगोलिक परिस्थितियों के कारण दूर-दूर तक फैला शहर और पहाड़ियों तथा घाटियों में बसाहट है । एक जमाने में भोपाल, चंडीगढ़ के समान चौड़ी सड़कों वाला व्यवस्थित शहर माना जाता था, परन्तु जिस तेजी से शहर व समृद्धि बढ़ी, उस तेजी से शहर का इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित नहीं हो पाया। भौतिक एवं भौगोलिक बाधाओं के कारण ही सही परन्तु हमारा शहर अधोसंरचना के मूलभूत विकास के साथ कदम ताल नहीं कर पाया । पहाड़ों व झीलों की भौगोलिक स्थिति के अलावा कलियासोत नदी तथा मुंबई व इन्दौर की रेलवे लाइन भी एक बड़ी भौतिक बाधा है, जिनके कारण सड़कों की ग्रिड की सुचारू योजना नहीं बन पाती । पुल, फ्लाई-ओवर आदि योजना के मद में भारी वृद्धि कर देते हैं और विकास योजनाएं वित्त विभाग में दम तोड़ देती हैं । यही कारण है कि दक्षिण-पश्चिम स्थित होशंगाबाद रोड से उत्तर-पश्चिम स्थित इंदौर रोड तक तो बाई-पास की आधी रिंग बन जाती है, परन्तु दक्षिण से पश्चिम की बाकी आधी रिंग मुम्बई रेल लाइन, कलियासोत नदी एवं केरवा, कलियासोत डेम व बड़े तालाब को पार करने में दूभर काम के चलते पूरी नहीं हो पाती । रिंगरोड के रिंग को पूरा करने के सीपीए के हालिया प्रयासों से भोपालवासियों में पुनः सुगम यातायात की संभावनाएं जागी हैं । क्या फायदा होगा :-राजधानी में रिंग रोड नहीं होने से यातायात में कई दिक्कतें आती हैं । प्रस्तावित आउटर रिंग रोड के बन जाने से भोपाल पहुँचने वाले चार अंतर्राज्यरय मार्गो पर गुजरने वाले वाहन बिना शहर में प्रवेश किए आउटर रिंग रोड से सीधे अपने गंतव्य के लिए रवाना हो सकेंगे । अभी इन मार्गो से आने वाले परिवहन को शहर के विभिन्न व्यस्ततम मार्गो से होते हुए अपने गंतव्य की ओर जाना होता है । इससे अक्सर सड़क दुर्घटनाएं होती रहती हैं। वर्तमान में तीन राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक १२ (जबलपुर से जयपुर) एनएच ६९ तथा एनएच ८६ मार्ग के वाहनों को शहर के अन्दर से गुजरना पड़ता है । आउटर रिंग रोड के बन जाने से शहर का मौजूदा सड़क परिवहन तथा बीआरटीएस कॉरिडोर और अधिक सुरक्षित हो जाएगा । बायपास बनने से भारी वाहनों को शहर के भीतर नहीं आना पड़ेगा । होशंगाबाद रोड सहित बाहरी हिस्सों में विकसित अन्य कॉलोनियों के प्रवेश द्वार पर होने वाली दुर्घटनाएं रूक सकेंगी । अन्य प्रस्तावित विकल्प :-बीआरटीएस सिस्टम मेट्रो रेल एवं स्काई ट्रेन इत्यादि से सस्ता विकल्प है । इसके निर्माण की अवधि भी काफी कम है । बीआरटीएस सिस्टम को छह चरणों में पूर्ण किया जाना है, ताकि इसका लाभ पूरे शहर को मिल सके । भोपाल शहर की बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ती वाहनों की संख्या के कारण शहर की सड़कों पर बढ़ते यातायात दबाव को दृष्टिगत रखते हुए बैरागढ़ से मंडीदीप तथा मंडीदीप से सूखी सेवनियां के बीच लाइट लोकल ट्रेन परिवहन सुविधा की दृष्टि से प्रस्तावित है, जिसके हर दो किलोमीटर के बाद स्टॉप स्टेशन निर्मित होना चाहिए । (लेखक मनोज सिंह मीक शुभालय ग्रुप के चेयरमेन हैं)