अब होगा कलियासोत का उद्धार ,33 मीटर में बनेगा ग्रीन बेल्ट
ग्रीन बेल्ट में बेतहाशा अतिक्रमण रोकने के लिए पहला ऎतिहासिक और अंतिम कदम उठ ही गया। बुधवार को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि भोपाल की कलियासोत नदी सहित प्रदेश की सभी नदियों के दोनों ओर 33 मीटर ग्रीन बेल्ट के दायरे में आने वाले सभी निर्माण तुड़वाएं। निर्माण गिराने के बाद जो जगह बने, वहां फेंसिंग कर इसी मौसम में सघन पौधरोपण कराकर ग्रीन बेल्ट स्थापित करें। ताकि अतिक्रमण के कारण मर रही नदी को संजीवनी मिल सके। कलियासोत नदी को बचाने के लिए पत्रिका की मुहिम तथा पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष्ा पांडेय के याचिका पर हुई सातवीं सुनवाई में एनजीटी ने अपना अंतिम आदेश दिया। कलियासोत नदी के ग्रीन बेल्ट में अभी करीब 50 हजार की आबादी रह रही है। 30 से ज्यादा बहुमंजिला रिहायशी इमारतें यहां खड़ी हुई हैं। जबकि 24 से ज्यादा रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में निर्माण जारी है। ऎसे में एनजीटी के फैसले से हजारों की यह आबादी सीधे तौर पर प्रभावित होगी। वहीं ग्रीन बेल्ट में बने आशियाने जमींदोज कर दिए जाएंगे। किस-किस को दिए निर्देश?: आम जनता : एनजीटी ने संविधान के अनुच्छेद 48 ए और 51 ए (जी) का हवाला देते हुए आम जनता को उसकी जिम्मेदारी बताई। कहा, राज्य सरकार और हर नागरिक का मूल कत्तüव्य है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा तथा उसका संवर्घन। इस पर्यावरण में वन, झील, नदी, वन्य जीव सभी शामिल हैं।नगर पालिका : एनजीटी ने आदेश में कहा कि कलियासोत किनारे संपूर्ण लम्बाई में कई कॉलोनियाें का अनुपचारित सीवेज सीधे ही नदी में जा रहा है। इसलिए नगर पालिका एक माह के भीतर संबंधित सभी कॉलोनियों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट या कॉमन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने के लिए रिपोर्ट पेश करे। नगर पालिका इस काम के लिए बिल्डर्स या कालोनाइजर्स द्वारा अमानत राशि के रूप में जमा कराई गई 25 फीसदी राशि का उपयोग भी कर सकती है।सरकार की सभी दलीलें खारिज: एनजीटी के ज्यूडिशियल मेंबर जस्टिस दलीप सिंह और एक्सपर्ट मेंबर डॉ. पीएस राव की बेंच ने सरकारी वकील सचिन के. वर्मा की तमाम दलीलों को खारिज करते हुए राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह 24 नवंबर को इन आदेशों के पालन की रिपोर्ट पेश करे। अब राज्य सरकार यह तय करेगी कि किस एजेंसी से ये निर्माण गिरवाए जाएं। एनजीटी ने अपने आदेश में कलियासोत के दोनों ओर 33 मीटर में ग्रीन बेल्ट कायम रखने के लिए सरकार से फेंसिंग और मुनारे लगाकर पौधरोपण कराने को कहा है। यह भी कहा है कि इस बीच कोई निर्माण आ रहा हो तो उसे हटाया जाए। -सचिन के. वर्मा, सरकारी अधिवक्ताअभी आपके मुंह से ही पहली बार इस बारे में सुन रहा हूं। आदेश आ जाने दीजिए। उसे पढ़ने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा।- एंटोनी डिसा, मुख्य सचिव ऎसे फैसले की ही जरूरत थीक लियासोत नदी के अस्तित्व की रक्षा के लिए ऎसे ही फैसले की जरूरत थी। एनजीटी का यह फैसला सराहनीय है। फैसला इस रूप में भी प्रशंसनीय है कि इसमें नदी के दोनों ओर 33-33 मीटर क्षेत्र के सारे अतिक्रमण तोड़कर 24 नवंबर तक रिपोर्ट भी पेश करने को कहा गया है। कार्रवाई की समयसीमा बांधने से इसके आसार बढ़ जाते हैं कि हालात में वास्तव में सुधार आएगा। ट्रिब्यूनल की जिम्मेदारी इस निर्णय के साथ खत्म हो गई है, लेकिन मामले में अन्य जवाबदेह पक्षों के संबंध में कई सवालों के जवाब अभी बाकी हैं। सवाल ये कि कलियासोत नदी को लीलने वाले और यहां के ग्रीन बेल्ट को क्रांकीट में तब्दील कर करोड़ों में खेलने वालों का क्या बिगड़ा? रिवर व्यू के नाम पर कलियासोत के दोनों ओर सैकड़ों अपार्टमेंट खड़े कर महंगे दामों में बेचने वाले बिल्डरों की मनमानी सालों से कैसे चलती रही? रिश्वत के रूप में मोटी रकम लेकर नियम-कायदों को दरकिनार कर निर्माण कार्य की अनुमति देने वाले अफसरों की सेहत पर क्या फर्क पड़ा? एनजीटी के इससे पहले के सख्त निर्देशों को आला अफसरों ने कितनी गंभीरता से लिया? जिंदगीभर की गाढ़ी कमाई लगाकर एक अदद आशियाना खरीदने वाले कितने दोषी हैं ? ये कुछ ऎसे सवाल हैं जो एनजीटी के फैसले के बाद उठना लाजिमी हंै। यह सच है कि बिल्डर, राजनेता और अफसरों के गठजोड़ ने कलियासोत नदी को तहस-नहस कर डाला है। नदी के किनारों पर क्रांक्रीट की दीवारें खड़ी कर इसकी चौड़ाई कम कर दी गई है। आसपास के ग्रीन बेल्ट का सत्यानाश हो चुका है। किनारों के दोनों ओर बेतहाशा निर्माण हो चुके हैं। अधिकांश अपार्टमेंट बिक चुके हैं। वहां लोग रहने लगे हैं। जाहिर है, ये पूरी गतिविधियां दो-चार माह में नहीं हुईं। करीब दस साल से यहां निर्माण कार्य बेधड़क चलता रहा। ग्रीन बेल्ट में मेडिकल कॉलेज तक बना हुआ है।बीडीए ने अपनी आवासीय योजना घरोंदा भी ग्रीन बेल्ट में लांच की है। अभी भी कई आवासीय प्रोजेक्ट यहां चल रहे हैं। एनजीटी में मामला जाने के बाद इनके निर्माण कार्य की गति मंद जरूर पड़ी है। दरअसल, कलियासोत नदी के साथ भोपाल का अस्तित्व जुड़ा है। ये नदी नहीं बचेगी तो भविष्य में भोपाल शहर की आधी आबादी पर कभी भी संकट मंडरा सकता है।इस संकट को ऎसे समझ सकते हैं कि कलियासोत डेम से शुरू हुई इस नदी की लंबाई करीब 33 किमी है, जो भोजपुर के पास बेतवा नदी में मिलती है। भोपाल व इससे लगे उपनगर कोलार में करीब 26 किमी की लंबाई में अपार्टमेंट की श्रृंखला बन चुकी हैं। बड़ा तालाब जब ओवरफ्लो होता है तो इसका पानी कलियासोत डेम में जाता है। और कलियासोत डेम ओवरफ्लो होता है तो इसका पानी इसी कलियासोत नदी में छोड़ा जाता है। ज्यादा बारिश होने पर ये हालात बनते रहते हैं।जब कलियासोत नदी ही नहीं बचेगी तो ये पानी कहां जाएगा? जाहिर है ये पानी रहवासी इलाकों में भरेगा और फिर तबाही की कल्पना ही की जा सकती है। बेहद अफसोस कि राजधानी के लिए इतनी अहम नदी के साथ ऎसा खिलवाड़ हुआ और कभी किसी सरकारी विभाग ने आपत्ति नहीं ली। अब जबकि एनजीटी ने फैसला कर लिया है, तो यह राज्य सरकार का दायित्व बन जाता है कि वह इस पर समय सीमा में सख्ती से अमल करे।इतना ही नहीं वह मामले की समीक्षा भी करवाए कि सरकार के स्तर पर क्या कमियां रहीं, जिनके कारण यह समस्या पैदा हुई। इसके लिए जवाबदेह अधिकारियों को चिंहित कर उनके खिलाफ कार्रवाई भी आवश्यक होगी और साथ ही भविष्य में इस तरह की कोताही नहीं रहे, इसके पुख्ता इंतजाम भी सरकार को करने चाहिए ताकि फिर किसी और नदी के साथ खिलवाड़ न हो। पत्रिका बना आधारतीन माह में आया फैसलापर्यावरणविद् पांडेय ने कलियासोत पर अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ 15 मई 2014 को एनजीटी में याचिका दायर की थी। पत्रिका ने सबसे पहले 16 मई को कलियासोत को खत्म करने की इस साजिश को बेनकाब करते हुए "कलियासोत के ग्रीन बेल्ट को निगल रहा रसूख" शीष्ाüक से मुहिम की पहली खबर प्रकाशित की।