" झालमुडी पत्रकार "
शैफाली गुप्ता
भोपाल में पत्रकारिता की आड़ में बहुत से काम लोग कर रहे हैं एक हलवाई टाइप का पत्रकार नेताओं को झालमुड़ी (एक किस्म की भेलपुरी) बनाकर चंदाखोरी कर रहा है । कुछ लोग उसे ''झालमुड़ी'' तो कुछ लोग उसे ''उधारी ''नाम से भी बुलाते हैं ।क्या कोई शख्स खुद को पत्रकार बताये और फिर नेताओं के दरबार में झालमुड़ी नामक व्यंजन बनाकर ले जा कर चंदा उगाही करे यह पढ़ने में आपको जरूर अटपटा लगे लेकिन है सौ टका सच ।
मेरे एक परिचित कोंग्रेसी राजनेता के यहाँ यह शख्स एक बड़ा डिब्बा भरकर कोई व्यंजन लाया ,मुझे बताया गया पंडित जी अपने हाथ से यह [झालमुड़ी ]बना कर लाये हैं ,उसे देखकर मुझे लगा कोई कुक या हलवाई होगा लेकिन मेरे पैरों तले उस वक्त जमीन सरक गई जब यह बताया गया यह पत्रकार हैं । झालमुड़ी का रायता फैला कर यह शख्स पत्रकारिता की आड़ में वसूली का खेल करता है । झालमुड़ी खिलाकर एक लिफाफा लेने के बाद ये झालमुड़ी पत्रकार वहां से रवाना हो गए । इसके बाद ये झालमुडी छाप पत्रकार मुझे एक बीजेपी प्रवक्ता और एक मंत्री के यहाँ झालमुड़ी खिलाकर सरकारी काम निकलवाते नजर आया । इनको लेकर मेरी जिज्ञासा बढ़ गई थी । पतासाजी की तो सच सामने आया ये इंदौरी साहब झालमुड़ी की आड़ में पैसा वसूली में लगे हैं ।
अब सवाल यह उठता है कि सीधे सीधे पत्रकारिता की बजाये झालमुडी वाला धंदा क्यों ? इंदौर से भोपाल पत्रकारिता की आड़ में धन्देबाजी करने आये ये साहब पहले अपनी गाडी में पेट्रोल डलवाने के नाम पर अपने सभी मिलने वालों को चूना लगा चुके हैं ,जिससे पैसा उधार लिया उसे लौटाया नहीं ,अगर किसी ने मांगा तो पत्रकारिता की धौंस । इनके इस गौरखधंधे के कारण इनका नाम ''उधारी ''पड़ा । इन्होने भोपाल के कई पत्रकारों तक का पैसा लिया और लौटाया नहीं । इन्होने भोपाल में कुछ जगह अपनी पत्रकारिता की दुकानें खोलीं और उसमे काम करने के लिए कई कुछ उत्साही युवतियों को पत्रकार के रूप में रखा लेकिन ये सब का कई महीनों और कुछ का एक एक साल तक का वेतन तक हजम कर गए।
इन ही के एक उज्जैन के पुराने साथी जो अब भोपाल में हैं उनके खुलासे तो झालमुड़ी पत्रकार को लेकर और भी ज्यादा चौंकाने वाले हैं। यह साहब पत्रकारिता की आड़ में सरकारी अफसरों से इंदौर घर जाने के लिए कार ले जाते हैं और आते जाते वक्त उसमे सवारियां तक ढ़ोने तक से इनको गुरेज नहीं हैं। पत्रकारिता में एक से एक शानदार और घटिता से घटिया लोगों से मेरा पाल पड़ा है लेकिन पत्रकारिता की आड़ में ऐसे लोग भी दुकानें जमाये हुए हैं इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती।