शाहपुरा तालाब की हालत ख़राब
शाहपुरा झील की हालत संवारने के लिए एनजीटी ने जो आदेश दिए थे, उन पर अब तक कोई अमल नहीं हुआ है, जबकि झील के पानी की गुणवत्ता सुधारने के लिए दो चरणों में काम करने को कहा गया था। इसका पहला चरण इसी साल जनवरी से और दूसरा चरण अप्रैल से शुरू होना था। फिलहाल झील की हालत जस की तस है। एनजीटी की तमाम फटकार और इसके बनी योजना के बाद भी उस पर काम करने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। इतना ही नहीं, बढ़ती जनसंख्या के साथ झील का प्रदूषण भी दिनों-दिन बढ़ रहा है और ग्राउंड वॉटर भी प्रदूषित हो रहा है। दिखावे के लिए जो कुछ एक-दो काम किए भी गए थे, वे इतने अवैज्ञानिक तरीके से सिर्फ खाना-पूर्ति जैसे किए गए थे कि वे किसी काम नहीं आए, जबकि उनमें लागत भी लाखों में आई। याचिकाकर्ता डॉ. सुभाष पांडेय बताते हैं कि जब तक एनजीटी में इस मामले की सुनवाई चल रही थी, बीएमसी और राज्य सरकार द्वारा दिखावे के लिए ही सही पर थोड़ी-बहुत कोशिशें की जा रही थीं। लेकिन इस मामले पर अंतिम आदेश आने के बाद से इस दिशा में कोई काम नहीं किया गया था। हमें जहां उम्मीद थी कि अब शाहपुरा झील की हालत सुधर जाएगी वहीं, असल में झील फिर से 2013 वाली स्थिति में फिर से पहुंच चुकी है। इस पूरी योजना को धरातल पर उतारने के लिए सरकार आश्वासन दिया था कि इसमें बजट की कमी कभी आड़े नहीं आएगी। योजना को पूरा करने के लिए 34 करोड़ रुपए खर्च करने का प्रावधान रखा गया था, जिसे चरणबद्ध तरीके से रिलीज किया जाना था।