भोपाल। मध्यप्रदेश के लिए कुपोषित बच्चों की सेहत सुधार को लेकर पिछला एक वर्ष अच्छी खबर लेकर आया है। देश में जहां इस एक वर्ष में कुपोषित बच्चों की संख्या में दो प्रतिशत की कमी आई है, वहीं मध्यप्रदेश ऐसे बच्चों की संख्या घटाने में चार प्रतिशत तक सफल रहा है।
इस संबंध में शुक्रवार महिला एवं बाल विकास विभाग के प्रमुख सचिव अनुपम राजन ने बताया कि पिछले साल की तुलना में इस बीते एक वर्ष में महिला एवं बाल विभाग द्वारा जमीनी स्तर पर कुपोषण से प्रदेश को मुक्त करने के लिए बहुत काम हुआ है। उन्होंने बताया कि वैसे तो देशभर के इससे जुड़े संपूर्ण आंकड़े सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (एसआरएस) के आंकड़े वर्ष 2022 में आएंगे, लेकिन प्रतिवर्ष जो आकड़ा केंद्र सरकार एवं राज्य सरकार का एकत्र होता है, उसे अनुसार यदि देखें तो मध्यप्रदेश में अब 48 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार नहीं है, इनमें बहुत हद तक कमी आई है।
उन्होंने बताया कि बच्चों या महिलाओं में खून की कमी को दूर करने की बात हो या उनके लिए चलाई जा रही अन्य योजनाओं से उन्हें अधिकतम लाभ पहुंचाने का विषय हो, सभी में पहले से बहुत बेहतर स्थिति आज आपको देखने को मिलेगी। यह हमारे विभाग के अथक प्रयास ही हैं कि आज कुपोषण में एक साल में हम 04 प्रतिशत की कमी करने में सफल रहे हैं, जबकि देश का औसत इस मामले में 02 प्रतिशत है।
दरअसल, आज राजधानी भोपाल में महिला एवं बाल विकास विभाग मंत्री इमरती देवी की पत्रकार वार्ता रखी गई थी। इसमें प्रमुख सचिव अनुपम राजन से मीडिया के बीच पूछे गए एक सवाल के जवाब में यह जानकारी दी है। इस संबंध में मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा पिछले वर्ष 11 अक्टूबर को की गई विभाग समीक्षा का असर भी दिखाई दे रहा है। उन्होंने विभाग की मंत्री और अधिकारियों से कहा था कि प्रदेश में कुपोषण को खत्म करने के लिए आंगनबाड़ियों में वितरित होने वाले पोषाहार की गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी होगा। इसके लिए मैदानी स्तर पर निगरानी की जरूरत है। मुख्यमंत्री ने विभागीय मंत्री इमरती देवी से कहा था कि कुपोषण को जड़ से खत्म तभी किया जा सकता है जब उसकी निगरानी और परिणामों की सतत निगरानी की जाए।
कमलनाथ ने यहां यह भी निर्देश दिए थे कि नौनिहालों का जीवन सुरक्षित हो, वे स्वस्थ्य हो यह एक बड़ी जवाबदेही महिला एवं बाल विकास पर है। उन्होंने इसमें जिला एवं जनपद पंचायत के सीईओ को भी जोड़ने को कहा जो ग्रामीण क्षेत्रों में सतत् रूप से कुपोषित बच्चों को मिलने वाले पोषण आहार की गुणवत्ता की जांच करें। अब जाकर बैठक में जो निर्देश मुख्यमंत्री कमलनाथ ने दिए थे, उसका असर आज जमीन पर दिखने लगा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष प्रदेश में सर्वाधिक 42.8 प्रतिशत अर्थात 48 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार थे । जिसमें कि 68.9 प्रतिशत बच्चे खून की कमी के शिकार और 15 से 49 साल की 52.4 प्रतिशत महिलाओं में खून की कमी की पाई गई थी। मध्य प्रदेश में एक साल तक के बच्चों की मृत्यु दर देश में सबसे अधिक 47 प्रतिशत यानी कि 90 हज़ार बच्चे अपना पहला जन्मदिन नहीं मना पाते थे, उनकी मौत हो जाती थी। साथ ही राज्य में 46 प्रतिशत बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण भी नहीं होता था । कुपोषण हर 1000 में से 47 बच्चों को लील लेता था। बिहार, उत्तरप्रदेश के बाद मध्यप्रदेश तीसरा राज्य है जहां कुल प्रजनन दर सर्वाधिक (टोटल फर्टिलिटी रेट) 3.1 है। ये आंकड़े हैं सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम यानी एसआरएस के 2019 के बुलेटिन के हैं लेकिन अब इन आकड़ों में बदलाव हो गया है।