जेके अस्पताल की गंदगी कलियासोत में
एनजीटी ने बायो मेडिकल कचरे को नष्ट करने में भारी लापरवाही बतरने पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भोपाल, जेके और पीपुल्स हॉस्पिटल को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। इस संबंध में एनजीओ सस्टेनिबिलिटी एंड ह्यूमन रिसोर्स इनिशिएटिव की ओर से दायर जनहित याचिका में एनजीटी ने तीनों अस्पतालों को प्रतिवादी बनाया है।एनजीटी ने भोपाल के अस्पतालों की मॉनीटरिंग के लिए पिछले साल बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर यह कार्रवाई की है। मॉनीटरिंग कमेटी ने 20 हॉस्पिटल के निरीक्षण के बाद यह रिपोर्ट तैयार की थी। एनजीटी ने तीन अस्पतालों की स्थिति को फिलहाल सबसे गंभीर माना है।वकील सचिन वर्मा, धर्मवीर शर्मा, पारुल भदौरिया, आयुश देव वाजपेयी एवं पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (पीसीबी) के एक्सपर्ट मेंबर माजिद कुरैशी की टीम ने निरीक्षण के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। एनजीटी के आदेश पर पिछले साल 25 मार्च 2015 को यह कमेटी बनाई गई थी। रिटायर्ड जज रेनू शर्मा को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन रेनू ने बीच में ही इस कमेटी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद सचिन वर्मा को कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया था। जस्टिस एसपी वांगड़ी और एसपी गर्बियाल की ज्यूरी ने इस कमेटी का कार्यकाल भी सोमवार को आगे बढ़ा दिया है। एनजीटी ने कमेटी को भोपाल के शेष बचे हॉस्पिटल का भी निरीक्षण जल्द पूरा करने का निर्देश दिया है।पीपुल्स अस्पतालः एनफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ईटीपी) नहीं है। पैथलैब और ऑपरेशन थिएटर से निकलने वाले वाले गंदे पानी, जिसमें खून के सैंपल और मांस के टुकड़े भी होते हैं, को सीधे सीवेज लाइन में डिस्चार्ज किया जा रहा है। बायोमेडिकल कचरे को अलग-अलग स्टोर नहीं किया जा रहा है। निरीक्षण रिपोर्ट में कहा गया है कि वार्ड में रखी सभी डस्टबिन खाली मिलीं, टीम के पहुंचने पर इन डस्टबिनों को बदल दिया गया। प्री-ऑपरेशन रूम में कोई डस्टबिन ही नहीं मिली। गायनिक को छोड़कर सभी ऑपरेशन थिएटर के लिए केवल एक ही डस्टबिन मौजूद है, उसी में सभी तरह का वेस्ट डाला जाता है।हॉस्पिटल के पास खुद का इन्सीनरेटर है, लेकिन यह बंद मिला। इन्सीनरेटर के पीछे स्टोर रूम के में लंबे समय से रखे बैग्स में वेस्ट की जली हुई राख भरी पड़ी है, जिसे प्रापर डिस्पोज नहीं किया गया है। अस्पताल के पीछे दो अंडरग्राउंड टैंक हैं, जिनमें अस्पताल से निकलने वाला गंदा पानी इकट्ठा किया जाता है। इन टैंकों से कीड़े पड़ रहे हैं और पानी सड़ांध मार रहा था।जेके अस्पतालः अस्पताल की दीवार कलियासोत डेम से एक दम सटी हुई है। जहां निरीक्षम टीम को एक ड्रेनेज पाइप मिला, जो सीधे डेम में जाकर गिरता है। अस्पताल में मेडिकल वेस्ट वाटर को भी ईटीपी के बजाए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) के जरिए ही डिस्पोज किया जा रहा है। अलग अलग रंग के डस्टबिन नहीं हैं। नर्सिग स्टॉफ द्वारा आईसीयू और ऑपरेशन थिएटर में खुले हाथों से वेस्ट का कलेक्शन करते हुए पाया गया था। इन हाउस लाउंड्री का कोई इंतजाम अस्पताल में नहीं हैं। टायलेट में बदबू मिली।एम्सः गंदे पानी के ट्रीटमेंट के लिए यहां एसटीपी और ईटीपी किसी भी तरह की व्यवस्था नहीं हैं। मेडिकली वेस्ट पानी को सीधे नालियों में बहाया जा रहा है। बायोमेडिकल मेडिकल वेस्ट के कलेक्शन के लिए यहां गत्ते के कार्टून इस्तेमाल होते हुए मिले। मेडिकल वेस्ट को अलग अलग करने का कोई सिस्टम यहां नजर नहीं आया।