भोपाल। पाकिस्तानी सेना से वर्ष 1971 में मिली भारतीय सेना की विजय की याद में ‘विजय दिवस’ का राज्य स्तरीय कार्यक्रम सोमवार को शौर्य स्मारक परिसर में आयोजित हुआ। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री कमलनाथ के अलावा जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा, संस्कृति मंत्री विजय लक्ष्मी साधो सहित सभी वरिष्ठ अफसर शामिल हुए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की विजय दिवस पर अमर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि भारत न पहले कमजोर था और न ही आज कमजोर है।
विजय दिवस समारोह में सीएम कमल नाथ ने कहा कि विजय दिवस पर हम सब को यह याद रखना चाहिए कि सभी नागरिकों को चाहे वे किसी भी मजहब, जाति या पंथ को मानने वाले हो सबका यह कर्तव्य है कि राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूत बनाएं। अपने शहीदों का गुणगान करें। उन्होंने नागरिकों का आह्वान किया कि हम सब भारत के विकास खुशहाली और अमन-चैन के लिए मिलकर प्रयास करें। मुख्यमंत्री ने विजय दिवस पर अपने संदेश में कहा कि 1971 का भारत पाकिस्तान युद्ध एक सैन्य संघर्ष था। यह संघर्ष 3 दिसम्बर 1971 को शुरू हुआ और 16 दिसम्बर को ढाका में पाक सेना के समर्पण के साथ समाप्त हो गया। उन्होंने कहा कि इस युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान ने भारत की वायुसेना के 11 स्टेशनों पर हवाई हमले किए । इसमें भारतीय सेना का पाकिस्तान से पूर्वी और पश्चिमी मोर्चे पर संघर्ष हुआ। भारतीय सेना ने पाक सेना को दोनों मोर्चों पर परास्त किया। हताश पाकिस्तानी सेना आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर हुई। इसी के साथ पूर्वी पाकिस्तान एक नए देश बांग्लादेश के रूप में स्थापित हुआ।
मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी जीत को हम आज विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। उन्होंने कहा कि यह युद्ध स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सशक्त नेतृत्व और अद्वितीय राष्ट्रवाद की अद्भुत मिसाल होने के साथ-साथ भारतीय जांबाज सैनिकों के अदम्य में शौर्य का प्रतीक है। इस युद्ध में पाकिस्तान के 93000 सैनिक घुटने टेकने पर मजबूर हुए और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा। मुख्यमंत्री ने इस अभूतपूर्व विजय के दो कारण बताते हुए कहा कि तत्कालीन प्रधानमंत्री भारत रत्न इंदिरा गांधी का दृढ़ संकल्प और राजनीतिक नेतृत्व और दूसरा कारण था। भारतीय थल सेना अध्यक्ष और चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल एच एच एफ जे सैम मानेकशॉ के कुशल रणनीतिक नेतृत्व। मुख्यमंत्री ने कहा कि 1971 की इस जीत ने भारत को एक अंतरराष्ट्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया। इससे देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पूरे विश्व में दृढ़ता के साथ निर्णय लेने वाली "आयरन लेडी " के रूप में पहचान मिली।