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ग्वालियर जिला मुख्यालय से 80 किमी दूर करहिया गांव के घने जंगल में स्थित मकरध्वज मंदिर इसकी प्राचीनता और त्रेतायुग की कहानी सुनाता है। रामभक्त हनुमान के पुत्र मकरध्वज के इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह देश-दुनिया में मकरध्वज का एकमात्र प्राचीन मंदिर है। इसे लेकर कई किवदंतियां भी हैं। मंदिर में मकरध्वज बंधे हुए नजर आते हैं। मान्यता है कि हनुमान जी राम-लक्ष्मण को अहिरावण के चंगुल से छुड़ाने के लिए पाताल लोक गए थे, तो वह रास्ता इसी जंगल से गया है। मंदिर परिसर में एक गोमुख भी है। इससे सदियों से जलधारा बह रही है। गोमुख से निकला जल एक कुंड में जाता है।
एक रात में बना सतखंडा महल! : जितना प्राचीन मकरध्वज मंदिर है उतना ही पुराना इसी परिसर में स्थित सतखंडा महल बताया जाता है। मान्यता के मुताबिक इस मंदिर को एक ही रात में पाताल लोक के द्वारपाल मकरध्वज द्वारा बनवाया गया था। जंगल के आसपास करीब 500 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ के बीचोंबीच एक विशाल गुफा भी बताई जाती है। इसके आसपास ऐसी कई प्राचीन धरोहर देखी जा सकती हैं जो अपने आप में अलग हैं। लोक मान्यता है कि अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक ले गया था। उसका रास्ता इसी गुफा से होकर जाता है। इसके द्वार पर अहिरावण द्वारा तैनात द्वारपाल मकरध्वज की बंधी मूर्ति है।
इसके बारे में कहा जाता है कि राम-लक्ष्मण को मुक्त कराने जब जब हनुमान जी पाताल लोक जा रहे थे तब गुफा के द्वार पर मकरध्वज और हनुमानजी के बीच युद्ध हुआ था। तब मकरध्वज ने उनके जन्म का रहस्य बताया। मकरध्वज के कहने पर ही हनुमानजी उन्हें गुफा के द्वार पर बांध गए थे। हनुमानजी ने राम-लक्ष्मण को अहिरावण के चंगुल से छुड़ाया और मकरध्वज को जंजीरों से मुक्त कर उन्हें पाताल लोक का राजा घोषित कर दिया। उसके बाद ही यहां मकरध्वज मंदिर बना।
मछली के गर्भ से जन्मे थे मकरध्वज
हनुमानजी के इस पुत्र के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार जब हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे तो मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया। तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी तो हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। जलती हुई पूंछ को बुझाने के लिए वे समुद्र में कूदे थे। उस समय उनके पसीने की एक बूंद पानी में टपकी जिसे एक मछली ने पी लिया था। उसी पसीने की बूंद से वह मछली गर्भवती हो गई और उससे उसे एक पुत्र उत्पन्न् हुआ, उसका नाम मकरध्वज पड़ा।
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