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आध्यात्म, तप और साधना से विश्व में जैन संस्कृति अग्रणी है। दो तरह का मार्ग है एक साधन संपन्न, सुख-सुविधा व भाग विलासता का और दूसरा साधना का मार्ग है। यह उद्गार सोमवार को चौक स्थित जैन धर्मशाला में पर्यूषण पर्व साधना में मुनि निकलंक सागर महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि साधना के मार्ग में आध्यात्म, तप और साधना को निरूपित किया गया है। भारतीय संस्कृति में त्याग को सम्मान मिला है। मुनिश्री ने कहा तप और ध्यान जीवन के आवश्यक कर्तव्य हैं, जो तपा जाए सो तप है। आत्म शुद्धि का मार्ग तप है। धूप में फल पकते हैं तो मिठास आ जाती है। उसी प्रकार ज्ञान में तपकर आत्मा कुंदन बन जाती है। मुमुक्षु मंडल के तत्वावधान में दस लक्षण धर्म श्रद्धा-भक्ति के साथ मनाए जा रहे हैं। इस साधना में प्रतिदिन श्रद्धालु भगवान जिनेंद्र का अभिषेक व पूजा-अर्चना कर रहे हैं।
बिना त्यागे जो पदार्थ छूटते हैं, उससे मानव को अति दुख का अनुभव होता है, लेकिन जब उन्हीं पदार्थों को बुद्धिपूर्वक उत्साह के साथ छोड़ा जाता है, तब बड़े आनंद की अनुभूति होती है। इसी तरह का त्याग मोक्ष मार्ग में बड़ा कार्यकारी माना जाता है।
यह उद्गार सोमवार को अशोका गार्डन स्थित दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य आर्जव सागर महाराज ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा धार्मिक कार्यों के निमित्त से धनादिक का त्याग व दान करने से वह धनादिक बढ़ता है घटता नहीं। यह तो विश्वास और श्रद्धा की बात है। 'दशलक्षण पर्व धर्म' पर आचार्य महाराज ने कहा कि अगर कुएं से जल नहीं निकाला तो सड़ जाता है। पान को नहीं पलटा जाए तो सड़ जाता है। रोटी को नहीं पलटा जाए तो जल जाती है। भगवान राम, हनुमान, महावीर आदि को जो मोक्ष मिला, वह संसार के त्याग से ही मिला। यही त्याग की महिमा है। रविवार को मंदिर में आयोजित पाठशाला में सौ बच्चों ने चातुर्मास के दौरान तक बाहरी खाने-पीने की वस्तुओं का त्याग का संकल्प लिया।
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