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भोपाल का बड़ा तालाब सेंट्रल इंडिया के नक्शे में इकलौता तालाब है, जिसे रामसर साइट का ताज मिला है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की रामसर कन्वेंसन संगठन ने यहां की जैव विविधता के कारण रामसर साइट के ताज से नवाजा है।
वर्ष 2002 में भोजवेट लैंड को रामसर साइट के रूप में नामांकित किया गया। भारत में कुल 26 साइट हैं, लेकिन सेंट्रल इंडिया में भोजवेट लैंड बड़ा तालाब ही एकमात्र साइट है। कई अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के आधार पर बड़े तालाब को रामसर साइट में नामांकित किया गया था।
यह हैं मापदंड, जिनसे मिलता है साइट का दर्जा
- किसी भूगर्भीय क्षेत्र में उपस्थित वाटर बाडी जो प्राकृतिक जल स्त्रोत के रूप में स्थापित हो और जहां दुर्लभ उदाहरण मिलता हो।
- ऐसे अति संवेदनशील लुप्त प्राय जलीय जीव जंतुओं वाली प्राकृतिक धरोहरों हों।
- ऐसी वाटर बाडी जो विभिन्न तरह के जलीय जीव जंतुओं या पौधों की जैव विविधता का उत्कृष्ट नमूना हो।
- यदि किसी भी वेटलैंड या वाटर बॉडी में 20 हजार या इससे अधिक जलीय पक्षी नियमित रूप से विचरण करते हों।
- यदि किसी वाटर बॉडी में उपस्थित जलीय जीव जंतुओं विशेषकर मछलियों का उत्पादन पर्याप्त मात्रा में बढ़ता हो, जिससे जैव विविधता में योगदान हो।
- यदि किसी वाटर बॉडी में मछलियों व अन्य जलीय जीवों के लिए पर्याप्त मात्रा में भोजन सामग्री उपलब्ध हो, उनके लिए ग्रीन लैंड या स्थलीय पथ जिससे कि वे जीवन जी सकें।
2002 में तालाब की यह थी खासियत
- विभिन्न प्रकार के जलीय जीव, सैकड़ों प्रजातियां न केवल दुर्लभ थे, बल्कि उनके जीवित रहने से स्थानीय जैव विविधता बनाए रखा जा सकता था।
- बड़े तालाब में माइक्रोसाइट की 106 प्रजाति जिसमें 14 प्रजाति दुर्लभ थे।
- फाइटोप्लैंटन की 108 और जू प्लांटेन की 105 प्रजातियां थीं।
- मछलियों की 43 प्रजातियां, रेप्टाइल (मगरमच्छ, म़ेढक, कछुआ) की 100 और अन्य कीट पंतगों की 98 प्रजातियां थीं।
- 20 हजार से अधिक पक्षी थे, जिनकी 160 प्रजातियां साल भर घूमते थे। इसमें अनेक पक्षी तो दुर्लभ थे।
- आश्चर्य जनक रूप से सारस क्रेन की 121 प्रजातियां थीं, भारत के सबसे बड़े पक्षी ग्रूस एंटीगोन भी पाए गए थे।
- पक्षी विज्ञानी डॉ.डीसी चौधरी के अनुसार 40 डिग्री तापमान पर भी कई पक्षी यहां रहना पसंद करते थे, जबकि मार्च तक पक्षी अधिकांतः चले जाते हैं।
तालाब का पानी उस समय बी कटेगरी मे था, कुछ जगह सीवेज मिलने से सी और डी कटेगरी भी मिला था।
रिपोर्ट में मिली खामीं
एप्को की 2014 की जांच रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि जिन कारणों से तालाब को इस साइट का दर्जा दिया गया है वह खूबियां धीरे-धीरे कम हो रही हैं। पानी की गुणवत्ता को बढ़ाने वाले वनस्पतियों की संख्या वैसीलेरियो साइसी की मात्रा 1999 में 1711 थी जो 10 साल में घटकर 1365 बची।क्लोरोफाइसी की संख्या 1999 में 1535 थी जो 10 साल में घटकर 1096 रह गई।
उन पौधों की संख्या बढ़ गई जो पानी में रसायनों के घुलने के कारण होते हैं जैसे साइनोफाइसी। इन पौधों की संख्या 1999 में 1321 थी जो 10 साल बाद बढ़कर 1944 हो गई। यानी तालाब के पानी में रसायन मिल रहा है।
जल में जीवनों की संख्या में भी जैव विविधता में कमी आई है।रोटीफेरा 1999 में 480 थी जो 10 साल बाद घटकर 357 रह गई।
कैलेनोइडा की संख्या 40 थी जो 20 बची।पानी में प्रदूषण में बढ़ने वाले जीवों की संख्या में वृद्घि दर्ज हुई। इसमें क्लैडोसेरा पहले 75 से 115 हो गई। इसी तरह कोपेपोडा की संख्या 166 से 248 हो गई।
बड़े तालाब के कारण भोपाल शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है। जैव विविधता की खूबियों के चलते रामसर साइट का दर्जा मिला है। लेकिन अब तक विभिन्न रिपोर्ट में पानी की गुणवत्ता खराब होना पाया गया है। जो चिंता की बात है। सरकारी एजेंसियों की जिम्मेदारी है कि ऐसी सभी तरह की गतिविधियों पर रोक लगाई जाए ताकि यह तमगा बचा रहे।
डॉ.सुभाष सी पांडेय, पर्यावरणविद
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वर्ष 2013 में बड़े तालाब की देखरेख का जिम्मा एप्को से नगर निगम को हस्तांतरित किया गया था, लेकिन अतिक्रमण हटाने के बजाए बढ़ते चले गए। इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है।
हरीश भावनानी, संयोजक भोपाल सिटीजन फोरम
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बड़े तालाब के संरक्षण के लिए जरूरी है कि इसकी मॉनिटरिंग के लिए एक स्वतंत्र एजेंसी होना चाहिए। जो सिर्फ तालाब के लिए काम करे। तभी तालाब बचाया जा सकता है।
देवीशरण, पूर्व आयुक्त ननि
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