भोपाल । आठ महीने पहले नसबंदी कराने आई महिला की मौत मामले में भोपाल के टीटी नगर स्थित कैलाशनाथ काटजू अस्पताल के अधीक्षक सहित पांच लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुआ है। टीटी नगर थाना पुलिस मंगलवार को भोपाल के जिला न्यायालय के आदेश पर यह एफआईआर दर्ज की है। एफआईआर में अस्पताल के अधीक्षक कर्नल डॉ. प्रवीण सिंह, तत्कालीन गाइनोकोलाजिस्ट डॉ. सुनंदा जैन, उनके पैरा मेडिकल स्टाफ, निश्चेतना विशेषज्ञ, लैब टेक्निशियन और मेडिको लीगल इंस्टीट्यूट की डॉ. केलू ग्रेवाल को आरोपी बनाया गया है। आरोप है कि एनेस्थिसिया के ओवरडोज से महिला की मौत हुई। न्यायालय ने इसे चिकित्सकीय लापरवाही माना है।
टीटी नगर थाना प्रभारी एएसआई प्रीतम सिंह ने बताया कि विद्यानगर निवासी अविनाश गौर ने न्यायालय में परिवाद दायर किया था। इसमें उन्होंने बताया कि 14 मई 2024 को सुबह वह अपनी पत्नी रीना गौर (38) को नसबंदी ऑपरेशन के लिए कैलाश नाथ काटजू अस्पताल ले गए थे। डॉक्टरों ने आपरेशन से पहले मेडिकल जांच में सब सामान्य बताया था। ऑपरेशन शुरू हुआ तो वे घर चले गए थे। दोपहर को उन्हें अस्पताल से फोन आया और तुरंत अस्पताल पहुंचने के लिए कहा गया। आपरेशन थियेटर के अंदर पहुंचे तो देखा कि पत्नी का पेट फूला हुआ है और दांत के बीच में जीभ फंसी हुई थी। स्टाफ ने बताया कि रीना की मौत हो गई है। पत्नी की मौत के बाद अविनाश गौर ने पोस्टमार्टम कराने को कहा तो डॉक्टरों ने मना कर दिया। शव का पोस्टमार्टम कराने के लिए काफी हंगामा हुआ। उसके बाद टीटी नगर पुलिस ने मर्ग कायम कर शव का पोस्टमार्टम कराया। हमीदिया अस्पताल में डॉ. केलू ग्रेवाल ने शव परीक्षण किया। इसकी रिपोर्ट में डॉक्टर ने स्पष्ट मत नहीं दिया। न्यायालय ने अविनाश के दावे को सही माना। पोस्टमार्टम रिपोर्ट को गलत मानते हुए न्यायालय ने कहा कि मौत के वास्तविक कारणों को नियोजित तरीके से दबाया गया है।
आईएमए की गाइडलाइन का उल्लंघन
अधिवक्ता अनिल कुमार नामदेव ने बताया कि लंबी जद्दोजहद के बाद यह एफआईआर हुई है। प्राइवेट शिकायत पर न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद मामला दर्ज हुआ है। प्रारंभिक स्तर पर पाया कि यह मेडिकल नेग्लिजेंस का केस है। महिला को एनेस्थीसिया दिए बिना ओटी में लेकर गए। वहां उन्हें एक सेमी का चीरा लगाया। इससे लापरवाही साबित होती है। वह 10 बजे पूरी तरह से स्वस्थ थीं। ऑल ऑफ सडन क्या हो गया कि है वह कोलेप्स हो गई। अभी तक की जानकारी में पाया गया है कि उस समय अस्पताल में दो दो एनेस्थीसिया विशेषज्ञ थे। मगर ओटी में एक भी नहीं गया था। यह आईएमए की गाइडलाइन का उल्लंघन है।