Advertisement
नई दिल्ली। विधानसभा से पारित बिलों को मंजूरी देने में राज्यपाल की देरी के खिलाफ पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को आग से न खेलने की नसीहत दी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह लोकतंत्र है। जनप्रतिनिधियों की ओर से पारित विधेयक को इस तरह लटकाया नहीं जा सकता। आप ये नहीं कह सकते हैं कि विधानसभा का सत्र ही गलत था।
चीफ जस्टिस ने कहा कि अगर राज्यपाल को लगता भी है कि बिल गलत तरीके से पास हुआ है तो उसे विधानसभा अध्यक्ष को वापस भेजना चाहिए। अगर राज्यपाल इसी तरीके से बिल को गैरकानूनी ठहराते रहे तो क्या देश में संसदीय लोकतंत्र बचेगा। चीफ जस्टिस ने कहा कि राज्यपाल राज्य का संवैधानिक मुखिया होता है लेकिन पंजाब की स्थिति को देख कर लगता है कि सरकार और उनके बीच बड़ा मतभेद है, जो लोकतंत्र के लिए सही नहीं है। चीफ जस्टिस ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि संविधान में यह कहां लिखा गया है कि राज्यपाल, स्पीकर द्वारा बुलाए गए विधानसभा सत्र को अवैध करार दे सकते हैं।
सुनवाई के दौरान राज्यपाल की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट एक हफ्ते का समय दे। वह इस मामले में कोई न कोई हल निकाल लेंगे। तब कोर्ट ने कहा कि अगर हल निकालना था तो कोर्ट आने की जरूरत क्यों पड़ी। तब मेहता ने कहा कि एक हफ्ते का समय दिया जाए।
सुनवाई के दौरान 6 नवंबर को मेहता ने कोर्ट को बताया था कि राज्यपाल ने फैसला ले लिया है। सरकार को इसकी जानकारी दे दी जाएगी। तब कोर्ट ने कहा था कि मामला कोर्ट आने से पहले राज्यपालों को निर्णय ले लेना चाहिए। कोर्ट ने पंजाब सरकार और राज्यपाल दोनों को आत्ममंथन करने को कहा था। कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल को मामला कोर्ट पहुंचने से पहले फैसला कर लेना चाहिए। पंजाब जैसी स्थिति कई दूसरे राज्यों में हुई है, जहां राज्यपाल तभी काम करते नजर आते हैं, जब मामला कोर्ट पहुंचता है। उन्हें मामला कोर्ट आने का इंतजार नहीं करना चाहिए।
पंजाब सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने राज्य विधानसभा की ओर से पारित 27 विधेयकों में से 22 पर ही मुहर लगाई है। 20 अक्टूबर को बजट सत्र के विशेष सत्र के दौरान पेश किए जाने वाले तीन धन विधेयक भी उसमें शामिल हैं। विशेष सत्र के पहले राज्य सरकार ने इन तीनों धन विधेयकों को राज्यपाल के पास सहमति के लिए भेजा था। लेकिन राज्यपाल ने इस पर सहमति नहीं दी।
राज्यपाल ने कहा कि चूंकि बजट सत्र 20 जून को समाप्त हो गया, ऐसे में कोई भी विस्तारित सत्र गैरकानूनी है। जिसकी वजह से विधानसभा का सत्र शुरू होने से पहले ही स्थगित करना पड़ा।
Kolar News
All Rights Reserved ©2025 Kolar News.
Created By:
![]() |