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क्या आप जानते हैं कि भारत में ग्वालियर सहित तिरंगा सिर्फ तीन स्थानों पर बनता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश के ग्वालियर में यह सभी मानकों को पूरा कर तैयार किया जाता है। भारत में मनाए जाने वाला राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हम जिस राष्ट्रध्वज (तिरंगा) को बड़े गर्व से फहराकर अनुभूति करते हैं, आखिर वह कैसे और कहां बनकर तैयार होता है? बता दें कि देश में केवल तीन ही ऐसे संस्थान हैं, जहां उच्च मानक वाला तिरंगा तैयार किया जाता है। इनमें से एक ग्वालियर शहर का मध्य भारत खादी संघ है। जहां BIS (ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड) का ISI प्रमाणित भारतीय तिरंगा बनता है। झंडा बनने की प्रक्रिया कई चरणों में पूरी होती है। जिसमें कपास की कताई, बुनाई, डाई सहित 9 मानकों पर खरा उतरने के बाद एक तिरंगा झंडा आकार लेता है। धागे से झंडा बनने के इस सफर में कई कारीगरों और बुनकरों की कला के साथ ही 55 दिन की कड़ी मेहनत भी लगती है। लाल किले पर भी ग्वालियर में बना झंडा फहराया जा चुका है। ग्वालियर के मध्य भारत खादी संघ में बने भारतीय तिरंगा देश में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक फहराया जा चुका है।मध्य भारत खादी संघ की वर्कशॉप ग्वालियर में जीवाजीगंज में स्थित है। जहां स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस से कुछ महीनों पहले से कारीगर दिन-रात काम में जुटे रहते हैं ताकि देशभर से आने वाली मांग की पूर्ति की जा सके। देशभर में फहराए जाने वाले राष्ट्रीय ध्वज में से 40 प्रतिशत ग्वालियर में बनाए जाते हैं। यहां से देश के 16 राज्यों में झंडा बनकर जाता है। राष्ट्रध्वज बनने की पूरी प्रक्रिया को जानने हम जब हम वर्कशॉप में पहुंचे तब यहां एक बड़े से हॉल में 15 से 16 कारीगर झंडा बनाने में व्यस्त थे। कोई झंडे की सिलाई कर रहा था तो कोई उसकी नपाई। महिलाएं झंडों की सिलाई करने में व्यस्त थीं। एक दिन में उन्हें लगभग 500 से अधिक झंडे सिलने होते हैं। झंडा सिल रहीं महिला सविता ने बताया कि वह 1 साल से झंडा सिलने का कार्य कर रही हैं और हर झंडे को सिलने के लिए उसके साइड के हिसाब से समय लगता है, सविता का कहना था कि उन्हें बहुत खुशी औरगर्व होता है जब उनके हाथ के बने हुए झंडे पूरे देश में फहराया जाते हैं।
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