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जबलपुर। मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने पटवारी भर्ती पर लगी रोक को चुनौती संबंधी याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए जवाब-तलब कर लिया है। इस सलसिले में राज्य शासन और कर्मचारी चयन आयोग को नोटिस जारी किए गए हैं। मामले की अगली सुनवाई 21 अगस्त को निर्धारित की गई है।
मध्य प्रदेश में हाल में पटवारी भर्ती परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया था, जिसमें गड़बड़ी के कथित आरोप लगने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पटवारियों की भर्ती पर रोक लगा दी थी। मुख्यमंत्री के इस निर्णय को उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी। सोमवार को न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी प्रयागराज दुबे की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता पटवारी चयन परीक्षा में शामिल हुआ। वह ईडब्ल्यूएस वर्ग का अभ्यार्थी था। उसे परीक्षा में 88.86 अंक प्राप्त हुए थे। उसे चयनित होने का पूरा भरोसा था।
अधिवक्ता संघी ने दलील दी कि मुख्यमंत्री ने राजनीतिक लाभ लेने के लिए पटवारी चयन प्रक्रिया पर रोक लगा दी। मुख्यमंत्री ने अपने एक बयान में स्वयं यह स्वीकार किया है कि गड़बड़ी महज एक केन्द्र में हुई है। लिहाजा, एक केंद्र में गड़बड़ी की वजह से पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाना अवैधानिक है। मुख्यमंत्री ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर पटवारी भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाई है। ऐसा इसलिए कि सिर्फ कर्मचारी चयन मंडल को ही भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने का अधिकार है।
अधिवक्ता संघी ने दलील दी कि मुख्यमंत्री को यह अधिकार नहीं है कि वे संदेह के आधार पर इतना बड़ा फैसला लें। इससे पूर्व व्यापमं की परीक्षाएं संदेह के घेरे में रही हैं। पिछले पांच सालों से किसी न किसी कारण भर्तियां नहीं हो पा रही थीं। लंबी प्रतीक्षा के बाद पटवारी परीक्षा हुई। आवेदकों को उम्मीद थी कि वे पटवारी बनेंगे, लेकिन भर्ती पर रोक लग गई। आवेदक की ओर से कहा गया कि सिर्फ चुनावी साल के चलते अपने फायदे के कारण पूरी पर भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई जो किसी भी दृष्टि से भी सही नहीं है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर दी गई गई दलीलें सुनने के बाद अदालत ने राज्य शासन और कर्मचारी चयन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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