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अपनी ओजस्वी शैली से दुनिया को जीवन जीने की कला सीखने वाले आचार्य रजनीश के जबलपुर स्थित आश्रम में गुरु पूर्णिमा धूमधाम से मनाई गई ,गुरु शिष्य परंपरा का पर्व गुरु पूर्णिमा मनाने के लिए उनके अनुयायी ना सिर्फ इंडिया बल्कि विदेश से भी ओशो की साधना स्थली जबलपुर में जमा हुए। ओशो के शिष्यों ने सबसे पहले प्रभात फेरी निकाली...और फिर ध्यान में लीन होकर अपने गुरु को याद किया। ओशो के शिष्य एक साथ मिलकर गुरु की भक्ति में लीन होकर झूमकर घंटों तक नाचते रहें।गुरु पूर्णिमा के अवसर पर दिन भर होने वाले कार्यक्रमों में ओशो का डायनेमिक ध्यान सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है, जिसमे हर शिष्य शामिल होकर अपने गुरु से संवाद कायम करने की कोशिश करता है, इसके अलावा गुरु पूर्णिमा पर होने वाली संन्यास दीक्षा का भी आयोजन आज हुआ जो कि साल में सिर्फ एक बार सिर्फ गुरु पूर्णिमा पर किया जाता है, जिसमे लोग दुनिया का मोह छोड़ संन्यास लेते है।अमेरिका न्यूयार्क से आए ओशो के भक्त का कहना है कि आचार्य रजनीश का हमेशा ही कहना रहा है कि चाहे दुख हों यां फिर सुख सभी को हंसते हुए मुस्कराते हुए मानना चाहिए। अमेरिका से आए स्वामी निर्देश ने बताया कि वह बीते 25 सालों से गुरु पूर्णिमा में जबलपुर आ रहें है, उनका कहना है कि ओशो की ध्यानस्थली में आकर ऐसा लगता है, मानो ओशो साक्षात दर्शन दे रहें है। आज ओशो के सभी अनुयाई उनके ही मार्ग पर चल रहें है।ओशो के अनुयायी स्वामी निर्दोष ने ओशो रजनीश की सोशल मीडिया से दूरी पर कहा कि जिस तरह से सूरज को किसी की जरूरत नहीं होती है, वैसे ही ओशो को आज भी सोशल मीडिया की जरूरत नहीं है, क्योंकि सच्चा गुरु वही होता है,जो अपने शिष्य को सच से परिचय करवाता है और खुद की पहचान खुद से करवा दे वही गुरु होता है।
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