Advertisement
फादर्स डे पर संस्था पौरुष (पीपुल अगेन्स्ट अनइक्वल रुल्स यूस्ड शेल्टर हेरासमेंट) द्वारा ‘चाइल्ड विजिटेशन’ (बच्चों से मिलने का अधिकार) को पति-पत्नी के सभी मुकदमों में अनिवार्य रूप से लागू किए जाने की मांग को लेकर पीड़ितजन मीडिया से रूबरू हुए।सभी ने एक स्वर में कहा कि बच्चों की परवरिश में माता एवं पिता दोनों का योगदान जरूरी होता है। पिता विहीन बच्चों का सामाजिक, आर्थिक, मानसिक, शारीरिक एवं भावनात्मक विकास उचित तरीके से नहीं हो पाता है। बढ़ते दाम्पत्य विवादों के कारण एक पक्ष (पत्नियां) मासूम बच्चों को लेकर चली जाती है तथा दूसरे पक्ष (पति) से वर्षों तक बच्चो को मिलने नहीं देती है।समाज में बढते ‘फादर-लेस सोसायटी’ एवं ‘सिंगल पेरेंटिंग’ के प्रचलन के कारण मासूम बच्चों का विकास रुक जाता है। ऐसे में चाइल्ड विजिटेशन के लिए एक जेंडर इक्ववल कानून बनाए जाने तथा उसे अनिवार्य रूप से लागू किए जाने की जरूरत है।इंदौर प्रेस क्लब पर आयोजित इस कार्यक्रम में संस्था अध्यक्ष अशोक दशोरा ने कहा कि मामले में हाई कोर्ट के दिशा निर्देश तो मौजूद हैं लेकिन स्पष्ट आदेश के अभाव में इन्हें अनिवार्य न मानते हुए स्वेच्छिक अथवा विवेकाधीन माना गया जो कि नैसर्गिक न्याय के अनुकूल नहीं है।दंपती में विवाद के चलते जब बच्चा किसी एक के पास रहता है तो वह अपराधी तक बन जाता है। संस्था 16 बिंदुओं पर इस मामले में हाई कोर्ट की शरण लेगी।कार्यक्रम में बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष पल्लवी पोरवाल ने कहा कि समिति हमेशा बच्चों के सर्वोत्तम विकास व कल्याण के लिए तत्पर रहती है। बच्चों को सारे अधिकार मिले यह सुनिश्चित करना समिति का काम है।पति-पत्नी में विवाद होने पर बच्चा किसी एक पक्ष के पास रहता है तो बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास प्रभावित होता है। एक बच्चे के लिए मां के प्यार के साथ पिता का संरक्षण भी जरूरी है। इस तरह के केस जब समिति के पास आते हैं तो समिति दोनों को समझाती है कि आपका विवाद अपनी जगह है लेकिन इसमें बच्चे का विकास होना जरूरी है।समिति ने पिछले दिनों कई दंपतियों की काउंसिलंग की जिसमें 13 दम्पती फिर से साथ में रहने को राजी हुए।
Kolar News
All Rights Reserved ©2025 Kolar News.
Created By:
![]() |