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सिवनी जिले के किसान संजय बघेल का परिवार पिछले 100 साल से आम की खेती कर रहा है। 100 साल पहले मात्र 5 आम के पेड़ से शुरू हुए इस बगीचे में अब एक हजार आम के पेड़ हैं। सिवनी जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर सारसडोल गांव के किसान संजय बघेल पहले पारंपरिक खेती करते थे। पारंपरिक खेती में मेहनत, लागत अधिक और आमदनी कम थी। वह कुछ ऐसा करना चाहते थे, जिससे ये अपने गांव से भी जुड़े रहे और आमदनी का जरिया भी तैयार कर सकें। इसी उद्देश्य से पांच साल पहले उन्होंने अपने पुश्तैनी बगीचे को व्यवसायिक रूप देना शुरू किया। देखते ही देखते इनके बगीचे में आम के पेड़ की संख्या में इजाफा होने लगा। पेड़ों की संख्या बढ़ी तो बगीचे का दायरा भी बढ़ता गया।पांच साल पहले जब व्यवसायिक स्तर पर संजय ने आम की खेती शुरू की तो मात्र 50 से 60 हजार रुपए की आमदनी होती थी। एक सीजन के हिसाब से यह आमदनी काफी कम थी, लेकिन उन्होंने बगीचे का दायरा जैसे ही बढ़ाया आमदनी भी उसी अनुपात में बढ़ने लगी। अब 20 एकड़ में आम के करीब एक हजार पेड़ हो गए हैं। इनसे हर साल 50 से 60 हजार किलो आम की पैदावार हो रही है। साथ ही आमदनी भी 18 से 20 लाख रुपए तक हो रही है। इन्होंने अपने गांव के नाम से सारस ब्रांड भी बनाया है।आम की रोपाई पौधे के रूप में की जाती है। आम का पौधा लगाने के लिए 50 सेंटीमीटर व्यास वाला एक मीटर गहरा गड्ढा खोदते हैं। मई महीने में गड्ढा खोद कर उनमें 30 से 40 किलो ग्राम प्रति गड्ढा गोबर की खाद मिटटी में मिलाकर डाल देते हैं। साथ ही 100 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर गड्ढे में भर दिया जाता है। अच्छी जल धारण क्षमता वाली बलुई व दोमट मिट्टी आम के लिए सबसे उपयुक्त होती है। जमीन का पीएच मान 5.5 से 7.5 तक इसकी खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। 10×10 मीटर की दूरी पर पौधे लगाए जाते हैं। वहीं सघन बागवानी में इसे 2.5 से 4 मीटर की दूरी पर लगाते हैं। गड्ढों में पौधों को लगाने से पहले गोमूत्र से उपचारित कर लिया जाता है।
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