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मणिपुर में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा दिए जाने के ऐलान से भड़की हिंसा थम नहीं रही है। इस बीच, पश्चिम बंगाल में कुर्मी समाज खुद को एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग के समर्थन में आंदोलन कर रहा है। इस साल होने वाले पंचायत चुनाव से पहले राज्य के झारखंड से सटे इलाको में कुर्मी समाज का आंदोलन ममता बनर्जी सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है।एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर बीते महीने राज्य के जंगलमहल के नाम से विख्यात बांकुड़ा, पुरुलिया और पश्चिमी मेदिनीपुर जिलों में हुए विरोध-प्रदर्शन में करीब 5 दिनों तक रेलवे और सड़क यातायात ठप रहा था। अब तृणमूल कांग्रेस के एक विधायक की ओर से इस आंदोलन की तुलना खालिस्तान से किए जाने के कारण कुर्मी समाज भड़क गया है।हालांकि सीएम ममता बनर्जी ने पार्टी विधायक की टिप्पणी पर माफी मांगी है, लेकिन कुर्मी समाज की नाराजगी कम नहीं हुई है। आंदोलन को राजनीतिक दलों के स्थानीय नेताओं का भी समर्थन मिल रहा है। कुर्मी समाज का नारा है, "पहले एसटी का दर्जा, फिर वोट'।कुर्मी नेता अजित प्रसाद महतो कहते हैं कि सीएम ने समाज की अनदेखी की है। इस बार हमारी मांगें पूरी नहीं हुई तो हम पंचायत चुनाव का बायकॉट करेंगे। महतो का आरोप है, "राज्य सरकार की संस्था पश्चिम बंगाल कल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अब तक कुर्मी को आदिम जनजातियों के रूप में मान्यता नहीं दी है। राज्य सरकार ने केंद्र को सही ढंग से रिपोर्ट नहीं भेजी है।सरकार की बेरुखी की वजह से ही हमें एसटी दर्जा देने की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ रही है।' वहीं, तृणमूल नेता अजित माइती का दावा है कि कुर्मी नेता गलत तरीके से राज्य सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मुख्यमंत्री के पास किसी समुदाय को एसटी का दर्जा देने का अधिकार नहीं है।
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