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जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद प्रदेश के 14 लाख लोग बेघर होने से बच गए। ये लोग गुज्जर, बकरवाल, गद्दी और दर्द शीन जनजातियों के लोग हैं, जो अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर ही निर्भर हैं। ये लोग जंगलों में जानवर चराते हैं, जंगल की जमीन पर ही घर बनाते हैं, दूसरी जरूरतों के लिए भी जंगल पर ही निर्भर रहे हैं।राज्य सरकार इन्हें जंगलों से निकालने की कोशिश लंबे समय से कर रही है। इन्हें कई बार नोटिस भी थमाया गया। दरअसल राज्य के कानून के तहत जंगल में रहना गैरकानूनी था। इसे अतिक्रमण माना जा रहा था।अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में भी वन अधिकार कानून 2006 लागू हो गया है। इसके बाद सदियों से जंगल पर निर्भर इन जनजातियों का जंगल पर अधिकार हो गया। वे हरे पेड़ों की लकड़ी छोड़कर जंगल की हर चीज का अपनी जरूरतों के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। जंगल में अपने पशुओं को भी चरा सकते हैं।स्थानीय अब्दुल मजीद बजरान कहते हैं- अगर यह कानून लागू नहीं होता तो शायद हम अपने घरों से ही निकाल दिए गए होते। इस कानून के बाद हमें जंगल से निकालने की कार्रवाई पर रोक लगी है। इससे पहले वन विभाग ने हमें हटने के लिए कई नोटिस भेजे।ट्राइबल रिसर्च फाउंडेशन के डॉक्टर जावेद राही कहते हैं- सरकार का यह सराहनीय कदम है। जनजातियों के लोग चाहते हैं कि इसे धरातल पर सच किया जाए। मुलनार्द के शब्बीर अहमद कहते हैं- अब तक सरकार ने हमसे सिर्फ फॉर्म भरने को कहा है। इसके अलावा कुछ नहीं हुआ।जम्मू-कश्मीर में 20,230 वर्ग किमी में जंगल फैला है। बकरवाल घुमंतू लोग हैं। ये सदियों से गर्मियों में अपने जानवरों के साथ कश्मीर के पहाड़ों में जाते हैं और सर्दियां जम्मू में बिताते हैं। गुज्जर पूरे कश्मीर और जम्मू के रजौरी और पूंछ जिले में फैले हुए हैं। गद्दी चरवाहे हैं और जम्मू में रहते हैं। दर्दशीन मुख्यतौर पर बांदीपुरा की गुरेज घाटी में रहते हैं।
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