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नई दिल्ली। देशभर में एक गंभीर और व्यापक बहस छिड़ी हुई है। यह समलैंगिक विवाह के संबंध में है। समलैंगिक विवाह की इस बहस के बीच दृष्टि स्त्री अध्ययन प्रबोधन केन्द्र ने एक देशव्यापी ही नहीं बल्कि विश्वव्यापी सर्वेक्षण शुरू किया है। इसमें मुख्य रूप से चार सवालों पर लोगों की राय मांगी गई है।
दृष्टि अध्ययन केन्द्र का समलैंगिक विवाह के बारे में पहला प्रश्न है- क्या आप मानते हैं कि भारत में समलिंगी विवाह एक गंभीर सामाजिक विषय है? दूसरा, क्या आपको लगता है समलिंगी संबंध नैसर्गिक है? तीसरा, भारत में क्या समलिंगी विवाह को वैधानिक मान्यता देना उचित होगा? और चौथा, क्या भारत में समलिंगी विवाह को वैधानिक मान्यता मिलने से भारतीय समाज पर अनुचित परिणाम होंगे?
महिलाओं से जुड़े प्रश्नों पर शोध करने वाले प्रतिष्ठित सामाजिक संगठन दृष्टि ने विभिन्न आयु वर्ग और स्थानों से लोगों को इस विषय में अपनी राय देने का आह्वान किया है। इसमें भाग लेना बहुत आसान है। एक लिंक पर क्लिक करते ही आप गूगल के माध्यम से मात्र 2 मिनट में अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। यह लिंक है- https://bit.ly/drishti-HND
दरअसल इस वैश्विक बहस का कारण बना है देश का सर्वोच्च न्यायालय। कुछ याचिकाकर्ताओं के मामले में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूड की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ इस पर नियमित सुनवाई कर रही है। सर्वोच्च न्यायालय यह तय करना चाहता है कि समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी जाए या नहीं। वहीं केन्द्र सरकार की ओर से बार-बार यह स्पष्ट किया गया है कि यह न्यायालय द्वारा तय किया जाने वाला विषय नहीं है।
इस विषय पर नियमित सुनवाई के दौरान भारत सरकार की ओर से पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 26 अप्रैल को एक बार फिर न्यायालय से कहा कि उसे समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मामले पर विचार नहीं करना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल मेहता ने स्पष्ट कहा कि यह बहुत जटिल मुद्दा है और इसके गंभीर सामाजिक परिणाम होंगे। इसलिए न्यायालय को इसे संसद पर छोड़ देना चाहिए।
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