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उज्जैन। एक भारत-श्रेष्ठ भारत कार्यक्रम अन्तर्गत त्रिवेणी संग्रहालय में दक्षिण के कलाकारों ने मंगलवार शाम को उज्जैन में भगवान शिव पर केंद्रित पेरिनी तांडवम् की प्रस्तुति दी। इसके पहले वारतां बिक्रमजीत दी का मंचन हुआ, जिसमें सम्राट विक्रमादित्य की शौर्य गाथा को सुनाया गया।
महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ द्वारा आयोजित इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में केबिनेट मंत्री डॉ. मोहन यादव, भृर्तहरि गुफा पीठाधीश्वर पीर रामनाथ सहित कई गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। इसके पहले महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने सभी अतिथि व कलाकारों का पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत किया। मंच का संचालन कवि लेखक दिनेश दिग्गज ने किया।
पेरिनी तांडवम् को पद्मश्री नटराज रामकृष्ण, गल्लेजा रंजीथ ग्रुप वारंगल(तेलंगाना) द्वारा कोरियोग्राफ किया गया है। इस मंचन में दल के प्रमुख गज्जेला रंजीत कुमार, आईवी पिडारो, एम लोहित, आर चंदु, टी गुरुदेव, टी संतोष व वी प्रशांत शामिल हैं।
दल के प्रमुख कलाकार रंजीत कुमार ने बताया कि यह नृत्य रूप आमतौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता है। जिसमें ढोल नगाड़ों का इस्तेमाल किया गया। यह नृत्य तब तक जारी रहता है जब तक कलाकार अपने शरीर में शिव की शक्ति को महसूस नहीं करते। इस नृत्य का आध्यात्मिक और कलात्मक दोनों तरह का महत्व है। इसे ''डांस ऑफ द वॉरियर्स'' भी कहा जाता है। योद्धा युद्ध के मैदान में जाने से पहले भगवान शिव की मूर्ति के सामने यह नृत्य करते हैं।
दूसरी प्रस्तुति वारतां बिक्रमजीत दी के निर्देशक राजीव सिंह ने बताया कि यह प्रस्तुति श्रृंगार रस, वीर रस, रौद्र रस, सौंदर्य रस, करुण रस इन सभी रसों की विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। यह एक संगीत प्रधान प्रस्तुति है। इसमें विक्रम और बेताल को बतौर सूत्रधार की जगह नाटकीय ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की गई है। इसमें सम्राट विक्रमादित्य की शौर्य गाथा को भी प्रस्तुत किया गया।
कथावाचक सूत्रधार रूपेश तिवारी, सारंगी पर हनीफ हुसैन, तालवाद्य पर रवि राव, अमीर खां, प्रशांत श्रीवास्तव तथा गायन टीम में राजीव सिंह, अमन मलक, फरदीन खान, जुबैर आलम, अमन सोनी, तलथ हसन, रुपाली ताल, उर्वर्शी कंगारे, देविंदर कौर थे।
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