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नगालैंड के मोन जिले में दिसंबर 2021 में आतंकवाद विरोधी अभियान में सेना के जवानों ने 14 युवाओं पर फायरिंग की थी, जिसमें उन युवाओं की मौत हो गई थी। केंद्र सरकार ने शुक्रवार को इन सैनिकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने से इनकार कर दिया है।नागालैंड पुलिस ने गुरुवार को इस बात की जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के फैसले के बारे में कोर्ट को भी बता दिया गया है। मामले की जांच कर रही नागालैंड SIT की चार्जशीट में 30 सैनिकों के नाम सामने आए थे। हालांकि, उस समय केंद्र सरकार ने संसद में स्वीकार किया था कि नगालैंड में सेना की फायरिंग एक गलती थी।4 दिसंबर 2021 को नगालैंड के ओटिंग में सेना आतंकियों के खिलाफ एक ऑपरेशन को अंजाम दे रही थी। सेना ने एक गाड़ी को रुकने का इशारा किया, कमांडोज को शक था कि इसमें आतंकवादी हैं। 21 कमांडोज ने फायरिंग शुरू कर दी। इस फायरिंग में 7 लोगों की मौत हो गई थी।घटना के विरोध में गांव के लोगों ने कमांडोज को घेर लिया और गाड़ियों में आगजनी करने लगे। इसमें एक जवान की भी मौत हो गई। इसके बाद सेना ने भीड़ को संभालने के लिए फायरिंग की, जिसमें 7 लोग और मारे गए थे। इसके अगले दिन मोन कस्बे में तनाव और विरोध के बीच सुरक्षाबलों की फायरिंग में एक और युवक मारा गया था।नागालैंड पुलिस प्रमुख की अध्यक्षता में SIT ने इस घटना की जांच शुरू की थी। इसके बाद 24 मार्च 2022 को सेना के जवानों पर मुकदमा चलाने के लिए केंद्रीय रक्षा मंत्रालय की मंजूरी मांगी थी।SIT ने 30 मई 2022 को कोर्ट में अपनी चार्जशीट में 21 पैरा स्पेशल फोर्सेज के 30 कर्मियों के नाम पेश किए थे। उनके खिलाफ हत्या की कोशिश और सबूत मिटाने के आरोप शामिल थे। SIT ने कहा था कि सैनिकों ने मारने का इरादे से ही गोली चलाई गई थी।सेना ने इस घटना की एक स्वतंत्र कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी भी बनाई थी, जिसमें दोषी पाए गए किसी के भी खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया गया। हालांकि, सेना ने कहा था कि वह कोई कार्रवाई नहीं कर सकती, क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में है। वहीं सुप्रीम कोर्ट से आरोपी जवानों की पत्नियों के नागालैंड पुलिस की FIR और SIT की रिपोर्ट को रद्द करने का अनुरोध किया था।इसके चलते 19 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में किसी भी तरह की कार्यवाही पर रोक लगा दी थी।
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