Advertisement
मध्यप्रदेश के खंडवा जिले के आदिवासी क्षेत्र खालवा के गांव आड़ाखेड़ा की। यहां 15 साल पहले झोला उठाकर आए एक बंगाली डॉक्टर ने उधारी में इलाज करना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद फसल आने पर पैसे के बदले अनाज लेने लगा। इस तरह वह झोलाछाप डॉक्टर के साथ व्यापारी बन गया। अब उन्ही गांव वालों को मुनाफे का लालच देकर करीब 50 लाख रूपए की फसल खरीद ली। तय समय पर रूपए देने की बारी आई तो बंगाली डॉक्टर भाग निकला।गांव आड़ाखेड़ा के किसान महेश यादव बताते है कि, बंगाली डॉक्टर सुब्रत विश्वास ने इलाज के साथ अनाज का व्यापार भी कई सालों से शुरू कर दिया था। लेकिन पहले वह इलाज के पैसे के एवज में अनाज लेता था। व्यापारी बनकर भी दो-चार लाख की खरीदी बहुत थी। पहली बार इतनी बड़ी मात्रा में उसने दोनों सीजन की फसलें खरीदी। किसानों से मंडी और मार्केट से 10-20 % ज्यादा भाव में सोयाबीन, कपास, मक्का और गेहूं खरीद लिया। किसानों को भरोसे में लेकर कहा कि, वह 15-20 रोज में अनाज का पैसा लौटा देगा। फिर उसने 30 मार्च को रूपए देने की बात कहीं। लेकिन 24 मार्च को ही वह घर से गायब हो गया।थाना खालवा टीआई जीएल कनेल के मुताबिक, बंगाली डॉक्टर सुब्रत पिता मणिलाल विश्वास निवासी कलकत्ता (पश्चिम बंगाल) पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया गया है। आड़ाखेड़ा गांव के 53 किसानों ने उसके खिलाफ शिकायत कराई है। किसानों ने गेहूं, मक्का, कपास और सोयाबीन फसल की खरीदी के बाद रूपए नहीं देने का आरोप लगाया है। 51 किसानों से 41 लाख रूपए फसल खरीदना बताया गया है। वही दो किसानों से उसने 10-12 लाख रूपए उधार लिए थे। कहा था कि फसल बेचकर सबके पैसे देगा। लेकिन अब वह गांव छोड़कर फरार हो गया है। पुलिस उसकी तलाश में जुटी है।ग्रामीण बताते है कि, बंगाली डॉक्टर सुब्रत ने पहले आड़ाखेड़ा गांव में आकर यहां एक टीन-टप्पर के मकान को आशियाना बनाया। न कोई क्लिनिक न दवाखाना था। सिर्फ झोला उठाता और इलाज के लिए मरीजों के घर चले जाता। इस तरह बीमार लोगों के परिजन के बुलाते ही वह इलाज के लिए घर-घर जाता था। बंगाली बोली के कारण गांव वालों में उसके प्रति दया भावना थी। जिस घर में इलाज करने जाता, वो लोग भोजन तक करा देते थे। एक-दो साल बाद उसने पड़ोस के गांव सावलीधड़ में भी पैर पसार लिए। लोगों का भरोसा जीता और यहीं बस गया। उसने खालवा में एक प्लाट भी खरीद लिया।ये तो हर गांव की कहानी है कि, झोलाछाप डॉक्टर उधारी में इलाज करते है। इसीलिए इनकी दुकानदारी चला करती है। इसी तरह बंगाली डॉक्टर भी था। वह इलाज के बाद तत्काल किसी से पैसे नहीं लेता था। ना ही किसान परिवारों के पास उस समय डॉक्टर को देने को रूपए होते थे। जब गेहूं-सोयाबीन का सीजन आता है, तब उधारी चुकती है। बंगाली डॉक्टर तो इन किसानों से रूपए के बदले सीधे गेहूं, सोयाबीन तुलवा लेता था। दो गांवों से औने-पौने दाम में अनाज इकट्ठा कर वह मंडी ले जाकर बेच देता था। मंडी में बेचने पर उसे मुनाफा होता था, यही से उसके मन में व्यापारी बनने का ख्वाब उमड़ा। फिर धीरे-धीरे करके वह बड़ी मात्रा में अनाज खरीदने लग गया।
Kolar News
All Rights Reserved ©2025 Kolar News.
Created By:
![]() |