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मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक बीमारी से जूझ रहे एक ही परिवार के पांच सदस्य
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रीवा। मध्य प्रदेश के रीवा जिले में एक ही परिवार के पांच सदस्य मस्कुलर डिस्ट्राफी नामक अजीब बीमारी से जूझ रहे हैं। इसकी जानकारी मिलने पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित परिवार से न केवल बात की बल्कि इसकी जानकारी भी दी उन्होंने ट्वीट के माध्यम से साझा की और परिवार को इजाल का भरोसा दिया।

 

दरअसल, रीवा जिले के त्योंथर तहसील अंतर्गत ग्राम उसरगांव निवासी मनीष यादव ने शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से फोन पर बात की और बताया कि उनका परिवार मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से पीड़ित है। मुख्यमंत्री ने चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने तथा हरसंभव सहयोग के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिये। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा कि बेटा मनीष, आपको और आपके परिवार को चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। मैं और पूरी मध्यप्रदेश सरकार आपके परिवार के साथ खड़ी है। आपको और परिवार के सभी सदस्यों को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। आप सभी स्वस्थ जीवन का आनंद लें, यही मेरी शुभकामनाएं हैं।

 

जानकारी के अनुसार, पीड़ित परिवार रीवा जिले में त्योंथर तहसील अंतर्गत ग्राम उसरगांव का रहने वाला है। परिवार में नौ लोग हैं, इनमें से पांच मस्कुलर डिस्ट्रॉफी नामक बीमारी से पीड़ित हैं। बच्चों में इस बीमारी के शुरुआती लक्षण साल 2006 में दिखाई देने लगे थे, जिसके बाद बच्चों को उनके स्वजन दिल्ली एम्स लेकर गए। एम्स के डाक्टर्स ने रिसर्च पेपर तैयार कर अमेरिका भेजा। रिपोर्ट आने के बाद जर्मनी और यूएई में ही इलाज मिलने की सलाह दी। बताया गया है कि स्टेम सेल थेरेपी के जरिए इस बीमारी का इलाज कुछ हद तक संभव है, लेकिन इसका खर्च बहुत महंगा है। एक लाख रुपये का एक इंजेक्शन पड़ता है। ऐसे 20 इंजेक्शन मरीज को लगाए जाते हैं। जांच और दूसरे चार्जेस का खर्च भी अलग से आता है। एक पीड़ित के इलाज में करीब 30 लाख रुपये का खर्च होने का अनुमान है।

 

क्या है मस्कुलर डिस्ट्राफी

रीवा के श्याम शाह मेडिकल कॉलेज के चिकित्सक डॉ. मनोज इंदुलकर ने बताया कि मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एक ऐसी बीमारी है, जिसमें इंसान कमजोर पड़ने लगता है। मसल्स सिकुड़ने लग जाती हैं और बाद में यह टूटने लगती हैं। डॉ. इंदुलकर के अनुसार यह एक तरह का आनुवंशिक रोग है। रोगी में लगातार कमजोरी आती है और उसकी मांसपेशियों का विकास रुक जाता है। यह बीमारी सबसे पहले कूल्हे के आसपास की मांसपेशियों और पैर की पिंडलियों को कमजोर करती है। उम्र बढ़ते ही यह कमर और बाजू की मांसपेशियों को भी प्रभावित करना शुरू कर देती है।

 

उसरगांव निवासी रामनरेश यादव (60) वर्ष के पांच बेटे और दो बेटियां है। सबसे बड़ी बेटी सुशीला यादव (38) और दूसरे नंबर की रीतू यादव (36), फिर पांच भाई सुरेश यादव (35), महेश यादव (28), अनीश यादव (25), मनीष यादव (23) एवं मनोज यादव (20) हैं। रामनरेश और उनकी बेटी सुशीला में उक्त रोग के बहुत मामूली लक्षण थे। सन 1998 से 2003 के बीच अनीश, मनीष और मनोज का जन्म हुआ। जब वे 8 से 10 साल की उम्र में पहुंचे, तो उनका शरीर सूखने लगा। स्कूल आना-जाना जारी रहा। बीमारी पर बच्चों के परिजनों ने गौर किया। वे 2006 में दिल्ली लेकर गए। वहां मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी का नाम सामने आया। परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं थी। ऐसे में घर लौटकर आ गए। बच्चों की उम्र बढ़ती गई। सोशल मीडिया का दौर आया। समय-समय सोशल मीडिया के जरिए अपनी पीड़ा सुनाते रहे।

 

एसडीएम पीके पांडेय ने बताया कि गत 2006 में अनीश यादव, मनीष यादव और मनोज यादव को रिश्तेदार दिल्ली एम्स लेकर गए। वहां पहली बार मस्कुलर डिस्ट्रॉफी बीमारी का खुलासा हुआ। गत 2019 तत्कालीन में संभागायुक्त अशोक भार्गव ने रीवा मेडिकल कॉलेज में जांच कराई। दूसरी बार अनजान बीमारी सामने आई। इसके बाद जब राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने तीनों बच्चों को दिल्ली स्थित अपने बंगले में बुलाया। दिल्ली एम्स में जांच कराई गई। तब यूएई और जर्मनी में इलाज की बात सामने आई।

 

इसके बाद शनिवार को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसकी जानकारी मिली। उन्होंने त्योंथर के एसडीएम पीके पाण्डेय के मोबाइल पर पीड़ित परिवार से बात की। दो मिनट तक मुख्यमंत्री ने मनीष यादव से बात करते हुए उन्हें भरोसा देते हुए कि आप सभी का इलाज कराया जाएगा।

 

पीड़िता सुशीला यादव ने बताया कि गत 22 मार्च को त्योंथर से भाजपा विधायक श्यामलाल द्विवेदी मुख्यमंत्री के पास गए थे। उन्होंने हम लोगों के इलाज की बात मुख्यमंत्री से की थी। शनिवार की शाम मुख्यमंत्री का फोन आया था। बातचीत के बाद अब लग रहा है कि हम लोगों का इलाज हो सकेगा।

 

पीड़ित रामनरेश यादव ने बताया कि गत 2022 में जब विवेक तन्खा के साथ इलाज कराने दिल्ली गए थे, तब डॉक्टरों की टीम ने कहा था कि यूएई की जगह जर्मनी में इलाज है। एक जांच का 70 से 80 हजार लगेगा। एक-एक लाख के 20 इंजेक्शन लगेंगे। तब शरीर सही होगा। जर्मनी आना-जाना सहित कुल 30 लाख रुपये का खर्च हर एक के इलाज पर आएगा। अगर पांच लोगों को इलाज के लिए जर्मनी भेजा जाता है, तो एक बड़ी धनराशि का खर्च आएगा। एसडीएम पीके पांडेय का कहना है कि आगे निर्णय दिल्ली में बना 40 सदस्यीय मेडिकल बोर्ड लेगा।

Kolar News 26 March 2023

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