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झाबुआ। जिले के जनजातीय समुदाय द्वारा प्रतिवर्ष चैत्र मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को परंपरागत रूप से मनाया जाने वाला गढ़ उत्सव सोमवार शाम को जिला मुख्यालय के राजबाड़ा चौक सहित जिले के शिवगढ़, नौगावां एवं अन्य अंचलिक गांवों में हर्षोल्लासपूर्वक एवं मोज मस्ती के वातावरण में मनाया गया। इस अवसर पर जिला के प्रशासनिक एवं पुलिस अधिकारियों सहित नगरपालिका परिषद के पदाधिकारी, गणमान्य नागरिक एवं बड़ी संख्या में ग्रामीण इलाकों से आए लोग मौजूद रहे। जिला मुख्यालय पर आयोजित गढ़ उत्सव इस वर्ष कुछ विलम्ब से शुरू हुआ, इसलिए गढ़ देखने आए लोगों को कुछ देर इन्तजार करना पड़ा।
गढ़ उत्सव के आरम्भ में जनजाति की परंपरा के अनुसार विधिवत रूप से सर्वप्रथम गढ़ देवता की पूजा की गई, ओर बाद में उत्सव की शुरुआत की गई। इस दौरान आदिवासी समुदाय के प्रमुख वाद्य ढोल, मांदल, थाली ओर झांझ बजाए जाते रहे, साथ ही महिलाओं द्वारा इस अवसर पर गाए जाने वाले गीतों का गायन भी किया जाता रहा। उत्सव शाम तक चलता रहा।
आदिवासी समुदाय में यह उत्सव प्राचीन समय से ही मनाया जाता रहा है। झाबुआ जिला स्थान पर पूर्व में इसका आयोजन राज दरबार की ओर से होता था, किन्तु अब इसका आयोजन नगरपालिका द्वारा किया जाता है। गढ़ में करीब 25 से 30 फीट का एक खंब राजबाड़ा चौक पर बीच चौराहे पर गाड़ दिया जाता है। जिस पर समुदाय के युवक चढ़ते हैं। खंब पर चढ़ने वाले युवक या तो पूर्व से ही इस बात का संकल्प लिए हुए होते हैं, या फिर कोई खुशी का अवसर प्राप्त होने पर गढ़ चढ़ते हैं। वस्तुतह यह खुशियों की अभिव्यक्ति ओर मोज मस्ती मनाए जाने का पर्व है। पहले के समय में खंब के सहारे ही गढ़ चढ़ना होता था, ओर उस खंब पर तेल लगा दिया जाता था, इस प्रकार खंब पर ठेठ ऊपरी सिरे तक पहुंचना बड़ा ही मुश्किल भरा कार्य था। गढ़ चढ़ने वाले व्यक्ति द्वारा किसी तरह खंब के आखिरी सिरे पर पहुंचना जहां विजय का प्रतीक माना जाता है, वहीं खंब से नीचे फिसल आना पराजय का प्रतीक कहा जाता रहा है। जो भी युवक खंब नहीं चढ़ पाता, वह हंसी का पात्र बनाया जाता है। नीचे बड़ी संख्या में उपस्थित महिला, पुरूष उसे चिढ़ाते हुए व्यंग्य करते हैं। जिला मुख्यालय पर आयोजित गढ़ के खंब के दोनों तरफ अब रस्सियां बांध दी जाती है। जिसके सहारे आदिवासी युवा को खंब के ऊपरी छोर पर पहुंचने में कुछ आसानी हो जाती है। किंतु अन्य स्थानों पर आज भी केवल खंब के ही सहारे गढ़ जीतना होता है। खंब के बिल्कुल ऊपरी हिस्से पर पहुंचने वाले व्यक्ति ने गढ़ जीत लिया, ऐसा कहा जाता है। वहां पर बांध कर रखी गई मिठाई वह स्वयं खाता है, और नीचे अपने परिजनों और मित्रों के लिए भी फैक देता है।
गढ़ की इस कठिन परीक्षा में कुछ युवक ही आखिरी छोर पर पहुंचते हैं। वहां पहुंचने पर उस युवक द्वारा गढ़ जीत लिया गया है, ऐसा माना जाता है। साथ ही सभी लोगों द्वारा उसे बड़े सम्मान से देखा जाता है। गढ़ जीतने पर उस युवक के परिजनों सहित ग्रामवासी गढ़ के आसपास गोलाकार रूप में अपने परम्परागत वाद्य ढोल, मांदल, थाली एवं झांझ बजाते हुए परिक्रमा करते हैं और महिलाएं गीत गाती हुई विजय की अभिव्यक्ति करती हैं।
जिले के मेघनगर जनपद क्षैत्र अंतर्गत नौगांवां, शिवगढ़ सहित अन्य स्थानों पर आयोजित गढ़ उत्सव में भी इस वर्ष खांसी भीड़ देखी गई। विभिन्न स्थानों पर आयोजित गढ़ उत्सव को देखने नगरीय क्षेत्र सहित बड़ी संख्या में समीपस्थ अंचलों से ग्रामीण जन आए थे, जिन्होंने इस उत्सव का भरपूर मजा लिया। जनजातीय संस्कृति के इस परंपरागत उत्सव को नववर्ष के पूर्व हर्षोल्लास और मौजमस्ती के रूप में मनाए जाने वाले उत्सव के रूप में भी जाना जाता रहा है। उत्सव के मद्देनजर सभी जगह पुलिस द्वारा माकूल व्यवस्थाएं की गईं।
Kolar News
21 March 2023
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