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भोपाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रदेश में समाज की तरफ से कई प्रेरणादायी कार्य हो रहे हैं। ऐसे कार्यों के जब समाचार मिलते हैं तो स्वाभाविक रूप से मन में सुखद अनुभूति और प्रसन्नता होती है। राजगढ़ जिले की खिलचीपुर के महिला-बाल विकास कार्यालय में सुपरवाईजर के पद पर पदस्थ बेटी संतोष चौहान, महिलाओं के लिए प्रेरणा और उदाहरण बन गई है। दोनों हाथ न होने के बावजूद वे आँगनवाड़ियों के दो सेक्टर और 128 केन्द्रों का दायित्व बेहतर तरीके से निभा रही हैं। जरूरत पड़ने पर गाँव का दौरा कर समस्याओं का निराकरण भी करती हैं।
मुख्यमंत्री चौहान ने गुरुवार को भोपाल के श्यामला हिल्स स्थित उद्यान में पौध-रोपण के बाद मीडिया प्रतिनिधियों से बातचीत में यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वर्ष 1988 में बेटी संतोष, जब 8 वर्ष की थी और कक्षा 5वीं में पढ़ रही थी, तब करंट लगने से उनके दोनों हाथ चले गए थे। इलाज के बावजूद उनके हाथ नहीं बचे। उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। मुश्किलों में काम करते हुए पढ़ाई पूरी की और आज महिला-बाल विकास विभाग में सुपरवाईजर के पद पर पदस्थ रह कर सबको प्रेरणा दे रही हैं। मुख्यमंत्री ने उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ दी।
करंट से चले गए दोनों हाथ, पैरों से लिखकर पूरी की पढ़ाई
कहते हैं कि मन में यदि कुछ कर गुजरने का विश्वास व साहस हो तो कैसी भी विषम परिस्थति में सफलता प्राप्त की जा सकती है। वह हौसला ही था जो हाथ न होने के बावजूद संतोष चौहान को रोक नहीं सका। यही कारण है कि न केवल पैरों से लिखना करते हुए अध्ययन किया, बल्कि पिछले कई वर्षों से वह 128 आंगनबा़डी केंद्रों का बखूबी संचालन भी बतौर महिला बाल विकास विभाग की बतौर सुपरवाइजर के रूप में कर रही हैं।
खिलचीपुर तहसील के डालूपुरा गांव की रहने वाली संतोष चौहान (48) फिलहाल महिला बाल विकास विभाग खिलचीपुर में सुपरवाइज के पद पर पदस्थ हैं। वह जब 8 वर्ष की थी, उस समय 1988 में करंट लगने के कारण उन्हें दोनों हाथ गंवाने पड़े। गांव में खेलते हुए उन्होंने बिजली का तार पकड लिया था, जिसके कारण उनके दोनों हाथ करंट से चिपक गए थे। इस हादसे के चलते उनका दाहिना हाथ पूरी तरह से खत्म हो गया था व बायां हाथ कोहनी तक ही बचा था। हाथ जाने के बावजूद संतोष ने अपनी मजबूरी को कभी लाचारी नहीं बनने दिया। उन्होंने हौसला नहीं खोया और बिना हाथों के ही पैरों से लिखना-पढ़ना शुरू किया। ऐसा करते हुए क़डी मेहनत के बल पर बीए तक की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने शासकीय सेवा में जाने की ठानी तो महिला बाल विकास विभाग में सुपरवाइजर के पद पर आसीन हो गई। तब से लेकर अब तक वह उसी पद पर रहकर सेवाएं दे रही हैं।
संतोष चौहान ने बताया कि नहलाने और खाना खिलाने का कार्य उनकी बहन करती है। इसके अलावा आफिस से लेकर फील्ड तक का कार्य स्वयं कर लेती है। फील्ड वर्क में उन्होंने कोई दिक्कत नहीं आती है। जबकि कार्यालयीन कामकाज को लेकर लिखा-प़ढी पैरों के माध्यम से करती है। इसके अलावा पैर या एक हाथ से मोबाइल पर मैसेज भेजने व मोबाइल चलाने का कार्य पूरा कर लेती है। ऐसा करते हुए वह फिलहाल अपने अधीन आने वाली 128 आंगनबा़डी केंद्रों का बखूबी संचालन कर रही है।
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