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ग्वालियर में सुबह के नाश्ते की बात की जाए, तो एसएस कचोरी वाले की प्रसिद्ध कचोरी का जिक्र सबसे पहले आता है। यहां बनने वाली खड़ी मूंग की दाल से भरी खस्ता कचोरी के लोग यूं ही दीवाने नहीं हैं। कहा जाता है कि 75 साल से यहां की कचोरी का स्वाद एक जैसा बना हुआ है। सिंधिया घराने के तत्कालीन मुखिया स्व. माधवराव सिंधिया भी यहां की कचोरी के दीवाने थे। कई बार कचोरी खाने के लिए खुद दुकान पर आते थे। उन्हीं के कहने पर दुकान का नाम भी बदलना पड़ गया था।एसएस कचोरी शॉप के संचालक हितेश भार्गव का कहना है कि वे परिवार की तीसरी पीढ़ी हैं, जो यह दुकान संभाल रहे हैं। असल में इस दुकान की नींव 75 साल पहले उनके दादा रामचरण लाल शर्मा व दादी लक्ष्मी देवी ने रखी थी। उन्होंने एक स्टॉल के रूप में कचोरियों की बिक्री शुरू की थी और दुकान का नाम अपने बेटे रामस्वरूप शर्मा के नाम से आरएसएस कचोरी रखा। उनकी मेहनत और दादी के हाथ की कचोरियों के स्वाद ने लोगों के दिल को इतना छुआ कि छोटा सा स्टॉल एक आलीशान दुकान में बदल गया। उसके बाद मेरे पिता रामस्वरूप शर्मा ने दुकान संभाली। अब मैं हितेश भार्गव और बड़े भाई ह्रदेश भार्गव काम संभाल रहे हैं।दुकान के संचालक हितेश ने बताया कि पहले उनकी दुकान का नाम आरएसएस कचोरी था। मेरे पिता स्व. रामस्वरूप शर्मा कांग्रेस कार्यकर्ता थे। उस वक्त दुकान पर कांग्रेस के बड़े नेता स्व. माधवराव सिंधिया भी कचोरी खाने आते रहते थे। एक बार उन्होंने मेरे पिता से कहा कि तुम हो तो कांग्रेसी लेकिन दुकान आरएसएस के नाम पर चलाते हो, तुम्हें इसका नाम बदलना चाहिए। तब मेरे पिता ने दुकान के नाम के आगे से आर को हटाकर एसएस कचोरी कर दिया। बाद में इन कचोरियों ने इतनी चर्चा बटोरी कि ग्वालियर की कचोरी की चर्चा दिल्ली तक होने लगी।आखिरकार ऐसा क्या खास है इनकी कचोरी में कि यह लोगों के मुंह से दिल में उतरकर दिमाग पर हावी हो जाती है। इस पर दुकान संचालक हितेश भार्गव बताते हैं कि सबसे पहले तो कचोरी में वह खड़े मूंग की दाल डालते हैं। जबकि अन्य कचोरी बनाने वाले दाल को खड़ा नहीं डालते हैं। इसके अलावा उनके खुद के पांच गोपनीय मसाले हैं, जिनको वह अपनी देखरेख में तैयार कराते हैं। कचोरी के मिक्सर में डालते हैं। आखिर में कचोरी के ऊपर की पपड़ी को मैदे से काफी स्वादिष्ट बनाया जाता है।
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