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मप्र के इतिहास में पहली बार सबसे लंबा करीब 350 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया
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भोपाल। मध्यप्रदेश के इतिहास में पहली बार सबसे लंबा करीब 350 किलोमीटर का ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया है। जबलपुर से सड़क मार्ग जरिए एक ब्रेनडेड मरीज का लिवर भोपाल लाया जा रहा है। डॉक्टरों की टीम गुरुवार रात करीब 10 बजे लिवर लेकर भोपाल के लिए रवाना हुई, जिसके देर रात तक यहां पहुंचने की उम्मीद है।

 

 

बंसल हॉस्पिटल के मैनेजर लोकेश झा ने बताया कि जबलपुर के मेट्रो हॉस्पिटल में 64 वर्षीय मरीज को 20 सितंबर को ब्रेनडेड घोषित किया गया था। उनके परिजनों ने ऑर्गन डोनेट करने की इच्छा जताई थी। जिसके बाद एक से डेढ़ घंटे में सर्जरी कर लिवर निकाला गया। जो भोपाल के बंसल हॉस्पिटल में भर्ती एक मरीज को ट्रांसप्लांट किया जाएगा। यह सर्जरी 5 से 10 घंटे तक चल सकती है। बंसल हॉस्पिटल के डॉ. गुरुसागर सिंह सहोटा ( लिवर ट्रांसप्लांट सर्जन) पूरे ऑपरेशन को लीड कर रहे हैं।

 

 

झा ने बताया कि हेलिकॉप्टर के जरिए लिवर लाने का प्लान था। डॉक्टर्स को जबलपुर से आर्गन लाने के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हेलिकॉप्टर मुहैया कराया था। डॉक्टरों की टीम ने हेलिकॉप्टर से भोपाल से जबलपुर के लिए उड़ान भरी, लेकिन रात होने की वजह से हेलिकॉप्टर ने वापसी की उड़ान नहीं भरी। इसके बाद सड़क मार्ग से लिवर लाने का फैसला लिया गया। लिवर जबलपुर के मेट्रो हॉस्पिटल से भोपाल के बंसल हॉस्पिटल लाया जा रहा है।

 

ऑर्गन डोनेशन के लिए काम करने वाली किरण फाउंडेशन के सचिव डॉ. राकेश भार्गव ने बताया कि गुरुवार-शुक्रवार की दरम्यानी रात प्रदेश में पहली बार सबसे लंबा 350 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरीडोर जबलपुर से भोपाल के बीच बनाया गया। जो जबलपुर, नरसिंहपुर, रायसेन और भोपाल के बीच बना। डॉ. राकेश भार्गव ने बताया कि 24 जुलाई 2017 को भी जबलपुर से एक ब्रेन डेड पेशेंट का ऑर्गन भोपाल लगाया गया था। तब यह फ्लाइट से लाया गया था। लेकिन, सड़क मार्ग से पहली बार जबलपुर से कोई आर्गन भोपाल लाया जा रहा है।

 

 

गौरतलब है कि इससे पहले इसी साल 10 मई को भोपाल से इंदौर के बीच 205 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरीडोर बना था। तब भोपाल के बंसल हॉस्पिटल में ब्रेन हेमरेज के बाद भर्ती हुई पुष्पलता जैन की एक किडनी इंदौर के निजी अस्पताल में भर्ती मरीज को ट्रांसप्लांट करने भेजी गई थी।

 

 

मेट्रो हॉस्पिटल जबलपुर के डॉ. सौरभ बड़ेरिया ने बताया कि 19 सितंबर को एक 64 वर्षीय मरीज भर्ती हुआ था। उसे ब्रेन ट्यूमर था। अस्पताल में दिए गए इलाज के बाद भी उसकी सेहत में सुधार नहीं हुआ। 20 सितंबर की सुबह मरीज ब्रेन डेड हो गया था। उसके परिजनों ने आर्गन डोनेट करने की इच्छा जताई थी। इस पर डॉक्टर्स की टीम ने तय प्रोटोकॉल के तहत नेशनल आर्गन एंड टिशु ट्रांसप्लांट आर्गेनाइजेशन (एनओटीटीओ) को आर्गन डोनेशन की सूचना दी थी। अप्रूवल मिलने के बाद लिवर को भोपाल भेजा गया।

 

 

पीयूष सराफ ने बताया कि उनके मामा राजीव सराफ को इसी साल 27 मार्च में ब्रेन ट्यूमर डिटेक्ट हुआ था। नागपुर के हॉस्पिटल में 29 मार्च को सर्जरी हुई थी। इसके बाद वह रिकवर हो गए थे। 19 सितंबर को उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ। इसके बाद इलाज के लिए मेट्रो हॉस्पिटल में भर्ती कराया था, लेकिन वह रिकवर नहीं हुए। बल्कि ब्रेन डेड हो गए। इसके चलते परिजनों ने मामाजी के आर्गन डोनेट करने का फैसला किया। ताकि उनके आर्गन से दूसरे व्यक्ति को जिंदगी मिल सके। राजीव सराफ मूल रूप से बैतूल के रहने वाले थे।

Kolar News 22 September 2023

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