Advertisement
यह तो सभी जानते हैं कि 1857 की जंग-ए-आजादी की सबसे बड़ी नायक झांसी के नेवलकर घराने की बहू व वीरांगना लक्ष्मीबाई (झांसी की रानी) रही थीं, लेकिन जब भी झांसी की रानी का जिक्र होता है तो ग्वालियर का जिक्र होना स्वाभाविक है। क्योंकि जंग ए आजादी की सबसे बड़ी आहुति वीरांगना को वीरगति ग्वालियर की धरा पर हुई थी। शिंदे की छावनी का वर्तमान में रामबाग इलाके में लक्ष्मीबाई को अंग्रेजी सेना ने घेर लिया था। वह बुरी तरह घायल हो गई थीं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपना घोड़ा बदला था और वह स्वर्ण रेखा में गिर पड़ी थी। किसी तरह उनके खास सैनिक उनको लेकर पास ही गंगादास की शाला लेकर पहुंचे थे। यहां ही 1857 की क्रांति की सबसे बड़ी नायक वीरांगना लक्ष्मीबाई ने आखिरी सांस ली थी। आज उनकी 165वीं पुण्यतिथि है। इस मौके पर हर कोई उनको याद कर रहा है। भाजपा के पूर्व मंत्री व कट्टर हिंदूवादी नेता जयभान सिंह पवैया वीरांगना की समाधि पर बड़ा कार्यक्रम कर रहे हैं। गंगादास की शाला में हर साल वीरांगना की जयंती और पुण्यतिथि मनाई जाती है।भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ी गई 1857 की जंग में सबसे बड़ी आहुति ग्वालियर में ही हुई थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत इसी शहर में हुई थी। शहादत के सम्मान की रक्षा के लिए भी जंग लड़ी गई और इसके बाद आजादी की पहली जंग कमोबेश ठंडी पड़ गई थी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की शहादत के बारे में लिखते हुए रानी के ही दरबार के एक ब्राह्मण विष्णुभट्ट गोडसे ने अपनी किताब ‘माझ-प्रवास’ में कहा है कि रानी ग्वालियर की जंग जीत सकती थीं, लेकिन पेशवा नाना साहब की अदूरदर्शिता और तात्या की हड़बड़ाहट ने इतिहास बदल दिया।
Kolar News
18 June 2023
All Rights Reserved ©2024 Kolar News.
Created By: Medha Innovation & Development
|